क्या उस्ताद अलाउद्दीन खां ने मैहर घराने की नींव रखी?

सारांश
Key Takeaways
- उस्ताद अलाउद्दीन खां ने मैहर घराना की स्थापना की।
- वे एक कुशल सरोद वादक थे।
- उन्होंने कई रागों की रचना की।
- उस्ताद ने कई प्रसिद्ध शिष्यों को प्रशिक्षित किया।
- संगीत के प्रति उनकी गहरी लगन थी।
नई दिल्ली, 5 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। घराना शब्द का अर्थ 'निवास' या 'परिवार' है, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत को ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय कई घरानों को जाता है, जिनकी वजह से यह संगीत न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रसिद्ध हुआ। इनमें से एक प्रमुख घराना है मैहर, जिसकी स्थापना भारतीय संगीत के भीष्म पितामह कहलाने वाले उस्ताद अलाउद्दीन खां ने की थी।
उस्ताद अलाउद्दीन खां एक उत्कृष्ट सरोद वादक, संगीतकार और शिक्षक हैं, जिनकी संगीत पर पकड़ अद्वितीय है। मैहर घराने ने अपने समय में संगीत की एक नई लहर पैदा की, जिसने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
1862 में जन्मे अलाउद्दीन खां का परिवार संगीत की पृष्ठभूमि से था। उन्होंने अपने बड़े भाई फकीर आफताबुद्दीन खां से संगीत की शिक्षा शुरू की और कई गुरुओं से प्रशिक्षण लिया। संगीत के प्रति उनकी रुचि ने उन्हें रामपुर ले जाया, जहां उन्होंने प्रसिद्ध वीणावादक वजीर खां साहब से शिक्षा ली।
संगीत के प्रति उनके प्रेम ने मैहर घराना की स्थापना की प्रेरणा दी। इस घराने में सरोद, सितार और अन्य वाद्ययंत्रों के साथ-साथ ध्रुपद और ख्याल गायन का समन्वय मिलता है। उन्होंने रागों की शुद्धता और तकनीकी कौशल पर विशेष ध्यान दिया, जिसने मैहर घराने को अद्वितीय बना दिया।
उस्ताद अलाउद्दीन खां ने विभिन्न वाद्ययंत्रों में निपुणता हासिल की और कई रागों की रचना की। वे मैहर में राजा भानु प्रताप सिंह के दरबार में संगीतज्ञ रहे, जहां उन्होंने अपनी कला को निखारा।
एक महान गुरु के रूप में, उन्होंने कई प्रसिद्ध शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जिनमें उनके पुत्र उस्ताद अली अकबर खां, पुत्री अन्नपूर्णा देवी, पंडित रविशंकर और पंडित निखिल बनर्जी शामिल हैं।
उस्ताद अलाउद्दीन खां को 'पद्म भूषण', 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार', और 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया। मैहर घराने ने संगीत को एक नई दिशा दी, और प्रसिद्ध फिल्मकार संजय काक ने उन पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई।
संगीत के प्रति उनकी गहरी लगन के साथ-साथ उस्ताद अलाउद्दीन खां का दूसरा प्रेम उनकी पत्नी बेगम मदीना थीं, जिनके नाम पर उन्होंने एक नया राग, 'मदनमंजरी' रचा। 6 सितंबर 1972 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा।