क्या माधवराव सिंधिया ग्वालियर के राजकुमार से कांग्रेस के राजनेता बने?

सारांश
Key Takeaways
- माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ।
- उन्होंने 1971 में जनसंघ से राजनीति की शुरुआत की।
- 1984 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को हराया।
- उनकी दूरदर्शिता ने बुलेट ट्रेन का विचार पेश किया।
- उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजनीति में कदम रखा।
नई दिल्ली, 29 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय राजनीति में कुछ ही नेता ऐसे रहे हैं जिनमें शाही ठाठ, आधुनिक सोच और जमीन से जुड़ा व्यक्तित्व साफ नजर आता है। 'माधव भाई' के नाम से मशहूर माधवराव सिंधिया ऐसे ही नेताओं में से थे। वर्ष 2001, 30 सितंबर को एक विमान दुर्घटना ने उन्हें हमसे छीन लिया।
10 मार्च 1945 को मुंबई में जन्मे माधवराव, ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। बचपन से ही खेलों और पढ़ाई में आगे रहने वाले माधवराव का जीवन विलासिता में शुरू हुआ, लेकिन उन्होंने जनता के बीच जाकर राजनीति में अपनी पहचान बनाई। 1971 में उन्होंने राजनीति की बुनियाद जनसंघ से रखी और पहले ही चुनाव में भारी मतों के अंतर से जीत हासिल की।
सिंधिया परिवार ने अपनी राजनीतिक यात्रा जनसंघ से शुरू की, लेकिन माधवराव ने बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया। 1984 के आम चुनावों में उन्होंने ग्वालियर से अटल बिहारी वाजपेयी को हराया, जो न केवल कांग्रेस के लिए बल्कि पूरे देश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। जनसंघ-भाजपा का गढ़ माने जाने वाले ग्वालियर अचानक सिंधिया के किले में बदल गया।
1984 से 1998 तक उन्होंने ग्वालियर से लगातार जीत दर्ज की। 1996 में कांग्रेस से अलग होकर भी उन्होंने भारी बहुमत से जीत हासिल की। दूसरी ओर, उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना से लगातार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतती रहीं।
माधवराव सिंधिया खेल, कला और संस्कृति के प्रति भी गहरी रुचि रखते थे। क्रिकेट, गोल्फ और घुड़सवारी उनके प्रिय शौक थे। वे न केवल खुद एक अच्छे खिलाड़ी थे, बल्कि बाद में क्रिकेट प्रशासक के रूप में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। कला और फिल्मों में भी उनकी गहरी रुचि थी। लोग अक्सर हैरान होते थे कि इतने शौकों के बावजूद वे राजनीति के लिए दिन में 12 घंटे से भी अधिक समय कैसे निकाल लेते थे।
रेल मंत्री रहते हुए, माधवराव सिंधिया ने भारत में बुलेट ट्रेन का विचार प्रस्तुत किया, जो उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण था। वहीं, नरसिंह राव सरकार में जब वे सिविल एविएशन मंत्री बने, तो एक विमान दुर्घटना के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए एक साल के भीतर इस्तीफा दे दिया। इस तरह की नैतिकता ने उन्हें राजनीति में एक अलग पहचान दी।
राजीव गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस और देश की जनता की निगाहें कुछ चुनिंदा नेताओं पर टिकी थीं। इनमें माधवराव सिंधिया और राजेश पायलट सबसे आगे थे। माना जाता था कि सिंधिया राजीव गांधी की विरासत को आगे ले जा सकते हैं। हालांकि, राजनीति के समीकरण बदलते गए और अंततः नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।
30 सितंबर 2001 को एक दर्दनाक विमान दुर्घटना ने देश को उस नेता से वंचित कर दिया, जिनमें अनुभव, ऊर्जा और भविष्य की उम्मीदें थीं। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति में आए, जो आज उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।