क्या मध्य प्रदेश में विरासत संजोने की मुहिम चल रही है? भोपाल में विक्रमादित्य द्वार का भूमि पूजन
सारांश
Key Takeaways
- मध्य प्रदेश में विरासत संरक्षण के लिए नई पहल।
- विक्रमादित्य द्वार का भूमि पूजन किया गया।
- महापुरुषों के नाम पर द्वार स्थापित करने की योजना।
- प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर को एकजुट करने का प्रयास।
- भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत।
भोपाल, १३ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मध्य प्रदेश में मोहन यादव सरकार ने अपनी विरासत को संजोने के लिए एक नई पहल शुरू की है। इसी कड़ी में शनिवार को भोपाल में विक्रमादित्य द्वार का भूमि पूजन सम्पन्न हुआ। राज्य सरकार ने राजधानी में महापुरुषों के नाम पर द्वार स्थापित करने का निर्णय लिया है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि आज का दिन अद्भुत संयोग का प्रतीक है। राज्य सरकार के विकास और सेवा के लिए समर्पित दो वर्ष पूरे हो रहे हैं, और भोपाल की धरती पर एक नया इतिहास लिखा जा रहा है। भोपाल विरासत और विकास की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ रहा है। विक्रमादित्य द्वार के भूमि पूजन के साथ हम प्रदेश की विरासत को संजोने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही शहर को स्वच्छ, सुलभ और प्रदूषण रहित परिवहन सेवा देने के लिए पीएम ई-बस सेवा योजना के तहत अत्याधुनिक ई-बस डिपो का भूमिपूजन भी किया गया है। राज्य सरकार के इन प्रयासों से भोपाल क्षेत्र विरासत और विकास के श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में विकसित होगा।
मुख्यमंत्री यादव ने बताया कि प्रदेश के गौरवमयी अतीत और समृद्ध संस्कृति को दर्शाते हुए राजधानी भोपाल में ९ स्वागत द्वार बनाए जा रहे हैं। इन द्वारों को परमार वंश के कुलदीपक राजा भोज, सम्राट विक्रमादित्य, श्रीराम, और श्रीकृष्ण के नाम पर स्थापित किया जाएगा। प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक शहरी विकास से जोड़ा गया है।
मुख्यमंत्री यादव ने कार्यक्रम स्थल पर सर्वप्रथम महाराणा प्रताप की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की और सम्राट विक्रमादित्य स्वागत द्वार एवं भोपाल में पीएम ई-बस सेवा योजना के अंतर्गत अत्याधुनिक ई-बस डिपो का भूमि-पूजन किया। सीएम यादव ने कहा कि जल गंगा संवर्धन अभियान के अंतर्गत मिट्टी निकालकर बड़े तालाब को गहरा किया जाएगा, जिससे खेतों में पानी भरने की समस्या का समाधान होगा। ग्राम फंदा का नाम बदलकर हरिहर नगर करने के संबंध में आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
मुख्यमंत्री यादव ने कहा कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण से देश की पहचान है। उनसे हम जीवन में रिश्तों की महत्ता को समझ सकते हैं। मध्य प्रदेश के साथ कई ऐतिहासिक घटनाएँ जुड़ी हैं। वीर विक्रमादित्य दुनिया की किसी भी ताकत के आगे नहीं झुके। उनकी वीरता, गंभीरता, दानशीलता, और न्यायप्रियता सभी के लिए ज्ञात है। उनके जीवन में जनता ही भगवान थी। उनकी प्रभावशीलता के परिणामस्वरूप ही अनेक राजाओं ने विक्रमादित्य उपाधि ग्रहण की। सम्राट विक्रमादित्य द्वारा स्थापित सुशासन, न्यास और सुरक्षा की व्यवस्था आज भी श्रेष्ठ शासन व्यवस्था के लिए अनुकरणीय है।
उन्होंने कहा कि राज्य शासन इन श्रेष्ठ सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए विकास, सेवा, और जनकल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। सम्राट विक्रमादित्य के कार्यकाल में अयोध्या में सरयू नदी के किनारे भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर बना था, जिसे बाबर ने ध्वस्त किया। प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान श्रीराम की जन्मस्थली पर भव्य मंदिर निर्माण कराया है। इसके लिए ५५० वर्ष तक कारसेवकों ने संघर्ष किया।
मुख्यमंत्री यादव ने प्रदेश की समृद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का उल्लेख करते हुए कहा कि राजा भोज के शासनकाल में निर्मित भोपाल का बड़ा तालाब आज भी आदर्श तकनीक का उदाहरण बना हुआ है। भगवान श्रीराम ने अपने १४ साल के वनवास के ११ साल चित्रकूट की पावन धरा पर बिताए। तुलसीदास ने यहीं पर रामचरित मानस की रचना की। भगवान श्रीकृष्ण ने उज्जैन में शिक्षा ग्रहण करने के बाद महाभारत के युद्ध में गीता के संदेश के माध्यम से अपने आचार्य से मिला ज्ञान समाज को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने सुदामा से मित्रता के माध्यम से दुनिया को दोस्ती का मतलब समझाया। राज्य सरकार श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़े सभी धर्मस्थलों को सर्व सुविधायुक्त बना रही है।