क्या महाकाल का दक्षिणमुखी शिवलिंग वास्तव में अद्वितीय है?

सारांश
Key Takeaways
- महाकाल का दक्षिणमुखी शिवलिंग अद्वितीय है।
- महाकाल की पूजा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- महाकाल के मंदिर में सिर नहीं ढकना चाहिए।
- महाकाल की आरती चिता की भस्म से होती है।
- उज्जैन में अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं।
नई दिल्ली, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। कालों के काल महाकाल। द्वादश ज्योतिर्लिंग में तीसरे स्थान पर पूजे जाने वाले महाकाल को कलयुग का कर्ता धर्ता और प्राणियों के काल हरने वाला माना जाता है। यहाँ महादेव एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हैं। वास्तुकला में दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज को मृत्यु का देवता माना गया है। मृत्यु से परे होने के कारण ही भगवान महाकाल को यह नाम दिया गया है। यह मान्यता है कि जो भी सच्चे मन से भगवान महाकालेश्वर के दर्शन और पूजा करता है, उसे मृत्यु के बाद यमराज द्वारा दी जाने वाली यातनाओं से मुक्ति मिल जाती है।
संसार के सभी शिव मंदिरों में जहाँ अन्य ज्योतिर्लिंग की जलाधारी उत्तर दिशा की ओर है, वहीं महाकालेश्वर की जलधारी दक्षिण दिशा की ओर है। महाकाल जो उज्जैन के राजा हैं, उनके सामने सिर नहीं ढका जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि "जहां राजा उपस्थित हो, वहां दूसरा कोई सिर ढककर नहीं बैठ सकता"। यही कारण है कि महाकाल मंदिर में सिर ढकना वर्जित है। इस क्षेत्र की महिमा स्वर्ग से भी बढ़कर है और इसे सभी तीर्थों में श्रेष्ठ माना गया है।
महाकाल जहाँ विराजते हैं, वहाँ कहा जाता है कि यहाँ श्मशान, ऊषर जमीन, सामान्य क्षेत्र, पीठ एवं वन का संयोग है। पुराणों में वर्णित है कि आकाश में तारकलिंग, पाताल में हटकेश्वर और मृत्युलोक में महाकाल स्थित हैं। बाबा महाकाल के मंदिर के ठीक ऊपर नागचन्द्रेश्वर का मंदिर है, जो साल में एक दिन नागपंचमी पर खुलता है।
महाकाल की आरती चिता की ताजा भस्म से उतारी जाती है, हालाँकि अब कंडे की भस्म का उपयोग होता है। प्राचीन काल में संपूर्ण विश्व का मानक समय भी यहीं से निर्धारित होता था। उज्जैन का आकाश ही है जहाँ कल्पनिक कर्क रेखा गुजरती है। महाकाल को पृथ्वी के केंद्र भी माना जाता है।
महाकाल के मंदिर के पास दो शक्ति पीठ हैं: पहला हरसिद्धि माता और दूसरा भैरव पर्वत, जहाँ माता सती के ओष्ठ गिरे थे। महाकाल के संबंध में स्कंद पुराण, शिव महापुराण एवं मत्स्य पुराण में उल्लेख मिलता है।
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम् |
अकालमृत्योः परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम् ||
महाकाल को प्रणाम करते हुए कहा जाता है कि जो भगवान शिव शंकर संतजनों को मोक्ष प्रदान करने के लिए अवन्तिकापुरी उज्जैन में अवतार धारण किए हैं। यहाँ भैरवनाथ की मूर्ति विश्व में अद्वितीय है। यहाँ शिप्रा नदी भी है, जिसके बारे में मान्यता है कि अमृत कलश से मंथन के दौरान एक बूंद गिर गई थी।
उज्जैन वही पवित्र स्थल है जहाँ श्रीकृष्ण, सुदामा और बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी। यहाँ माता पार्वती द्वारा लगाए गए चार प्राचीन वट वृक्ष भी हैं।
महाकाल के साथ चिंतामन गणेश मंदिर भी है, जो महाकालेश्वर से 6 किलोमीटर दूर है। यहाँ भगवान गणेश तीन रूपों में विराजमान हैं। उज्जैन का शनि मंदिर भी है, जहाँ शनिदेव को भगवान शिव के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
इस प्रकार, महाकाल को उज्जैन के राजा के रूप में पूजा जाता है, इसलिए यहाँ कोई भी राजा या प्रशासक रात में नहीं रुक सकता।