क्या मालेगांव ब्लास्ट मामले में अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा? : अफजल अंसारी

सारांश
Key Takeaways
- मालेगांव ब्लास्ट मामले में अभियोजन की विफलता पर सवाल उठाए गए।
- हेमंत करकरे ने महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रस्तुत किए।
- आरोपियों की बरी होने का कारण अभियोजन की कमजोरी है।
- राजनीतिक दबाव का संकेत मिलता है।
- हर धर्म में अच्छे और बुरे लोग होते हैं।
नई दिल्ली, 1 अगस्त (राष्ट्र प्रेस) - समाजवादी पार्टी के सांसद अफजल अंसारी ने शुक्रवार को मालेगांव ब्लास्ट मामले में बरी हुए सभी आरोपियों के बारे में कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने आरोपों को साबित करने में विफलता दिखाई है। इस कारण कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हो सके। अब यह प्रश्न उठता है कि अभियोजन का संचालन कौन कर रहा है और इसकी जिम्मेदारी किसकी है?
उन्होंने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि जब इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई, जिसका नेतृत्व हेमंत करकरे कर रहे थे। उन्होंने पूरे मामले की गहराई से जांच की और सभी सच्चाइयों को परत दर परत सामने लाया। ऐसे साक्ष्य जो अकाट्य थे, उन्हें भी उन्होंने प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि हम इस मामले की तह तक जाएंगे और जो लोग भी पर्दे के पीछे हैं, उन्हें हर हाल में उजागर करेंगे। लेकिन, साजिश के तहत उन्हें जांच अधिकारी के पद से हटाने की कोशिश की गई। इसके लिए न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन विफलता ही हाथ लगी।
सपा सांसद ने कहा कि ताज होटल में हुए हमले के दौरान हेमंत करकरे वीरगति को प्राप्त हो गए। आज तक कई लोग यह कहते हैं कि मौके का लाभ उठाते हुए उन्हें मारा गया। उनके साथ धोखा हुआ था। इतना ही नहीं, परिजनों ने भी इस तरह के आरोप लगाए थे। मालेगांव ब्लास्ट मामले की जिस तरह से दुर्गति हुई है, उससे हेमंत करकरे की आत्मा को बहुत दुख पहुंचा होगा। न्याय में विश्वास रखने वाले लोगों को आघात पहुंचा है, क्योंकि यह पूरी तरह से अभियोजन की विफलता है और यह सब कुछ सत्ता में बैठे लोगों के इशारे पर हुआ है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि ये लोग अपने आरोप साबित नहीं कर पाए।
उन्होंने यह भी दावा किया कि हेमंत करकरे को जानबूझकर रास्ते से हटाया गया, ताकि इस मामले में संलिप्त बड़े लोगों तक हाथ नहीं पहुंच सके। अब हेमंत करकरे जैसे कोई अधिकारी नहीं होंगे, जिन्हें हर तरह की धमकी मिली और उन्हें हर संभव तरीके से हटाने का प्रयास किया गया। वे असली राष्ट्रभक्त थे, जिन्होंने पर्दे के पीछे बैठकर बड़ी-बड़ी जघन्य घटनाओं से पर्दा उठाया। मालेगांव ब्लास्ट मामले में न्यायालय के फैसले से देश के लोग अघात में हैं।
वहीं, भगवा आतंकवाद की अवधारणा को गढ़ने वाले लोगों के संदर्भ में सपा सांसद ने कहा कि कहने वाले लोग तो कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन मेरा अपना निजी मत यह है कि किसी भी आतंकवाद की पहचान उसके जाति, धर्म या किसी विशेष संप्रदाय से नहीं हो सकती। हर धर्म में बहुत से अच्छे लोग होते हैं। निश्चित रूप से कुछ अप्रिय विचार रखने वाले लोग भी होते हैं।