क्या मालेगांव ब्लास्ट केस में शामिल अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए?

सारांश
Key Takeaways
- 17 साल बाद मालेगांव ब्लास्ट केस में न्याय मिला है।
- कांग्रेस पार्टी पर गंभीर आरोप लगते हैं।
- रोहन गुप्ता ने अधिकारियों की जवाबदेही की मांग की।
- कोर्ट ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ सबूत नहीं हैं।
- राजनीतिक बयानबाजी का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। मालेगांव ब्लास्ट केस में एनआईए कोर्ट द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के बाद राजनीति में हलचल बढ़ गई है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रोहन गुप्ता ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि इस मामले में 17 साल बाद न्याय मिला है।
उन्होंने कहा कि 17 साल तक जिन लोगों ने मानसिक प्रताड़ना झेली है, उन पर कांग्रेस पार्टी के नेताओं को माफी मांगनी चाहिए। उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, जिन्होंने इन लोगों के नाम को इस मामले में शामिल किया था। मेरा मानना है कि इस मामले में पूरी सच्चाई देश की जनता के सामने आनी चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हुआ?
उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह से 17 साल पहले 'भगवा आतंकवाद' का आरोप लगाकर हिंदू धर्म को बदनाम करने की कोशिश की गई थी, वह गलत था और आज उसका पर्दाफाश हुआ है। कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाया है। कांग्रेस के नेताओं को देश से माफी मांगनी चाहिए।
रोहन गुप्ता ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि आज इतना बड़ा फैसला आया है और वह इस विषय पर कोई बयान नहीं दे रहे हैं। आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में चौथे स्थान पर है। ऐसे में राहुल गांधी इस मुद्दे पर सवाल खड़ा करके भारत का अपमान कर रहे हैं। राजनीति में इस स्तर पर बयानबाजी करना और भारत की अर्थव्यवस्था को डेड इकोनॉमी बताना निंदनीय है।
वहीं भाजपा सांसद रविशंकर प्रसाद ने मालेगांव ब्लास्ट मामले में कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि आज का दिन बहुत ऐतिहासिक है। देश पर जबरन 'हिंदू आतंकवाद' का नैरेटिव थोपने की कांग्रेस पार्टी की साजिश पूरी तरह ध्वस्त हो गई है। मालेगांव विस्फोट मामले में अदालत ने साफ कह दिया है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं। अभियोग पक्ष अपनी बात को अदालत के सामने साबित नहीं कर पाया न ही किसी के खिलाफ पुख्ता सबूत पेश कर पाया।