क्या 17 साल बाद मालेगांव बम ब्लास्ट मामले के सभी 7 आरोपी बरी हो गए?

सारांश
Key Takeaways
- मालेगांव बम ब्लास्ट में 17 साल बाद सभी आरोपियों को बरी किया गया।
- कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में यह फैसला सुनाया।
- इस मामले में 323 गवाहों से पूछताछ की गई थी।
- मामले की जांच एनआईए ने की थी।
- मामले में आरोपी जमानत पर रिहा हैं।
नई दिल्ली, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 17 साल के लंबे इंतज़ार के बाद, गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने सभी सात आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में कई महत्वपूर्ण भिन्नताएँ हैं। अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि बम मोटरसाइकिल में था। प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं पाया गया कि उन्होंने बम बनाया या आपूर्ति की। यह भी सिद्ध नहीं हो पाया कि बम किसने लगाया। घटना के बाद विशेषज्ञों ने आवश्यक सबूतों को इकट्ठा नहीं किया, जिससे साक्ष्यों में गड़बड़ी उत्पन्न हुई।
कोर्ट ने कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए, और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं किया गया। साथ ही, यह सिद्ध नहीं हुआ कि वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम पर थी।
ज्ञात रहे कि इस मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा गया था। इस मामले में सात आरोपी शामिल हैं, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं। सभी पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं।
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक धमाका हुआ। इस विस्फोट में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए।
शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी। हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई।