क्या मस्जिद में बैठक करना सही है? मौलाना तौकीर रजा का बयान

सारांश
Key Takeaways
- मस्जिद का उपयोग केवल इबादत के लिए होना चाहिए।
- राजनीति को धार्मिक स्थलों से दूर रखना आवश्यक है।
- धर्मनिरपेक्षता और इंसानियत का पालन करना आवश्यक है।
बरेली, 24 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। संसद के मानसून सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव द्वारा संसद भवन के निकट स्थित मस्जिद में एक बैठक आयोजित करने की खबरों ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। मुस्लिम धार्मिक नेता मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि यदि मस्जिद के भीतर कोई बैठक हुई है, तो उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। मस्जिद में किसी भी तरह की राजनीति स्वीकार नहीं की जा सकती। सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी, जो उस मस्जिद के इमाम भी हैं, को इस पर ध्यान देना चाहिए कि मस्जिद इबादत की जगह है, न कि वहां पर बैठकें आयोजित की जाएं।
मुस्लिम धार्मिक नेताओं के साथ-साथ भाजपा ने भी समाजवादी पार्टी पर जोरदार हमला किया है और अखिलेश यादव के खिलाफ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराने की चेतावनी दी है। वहीं, सपा सांसद मोहिबुल्लाह नदवी के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इस पूरे मामले के बीच कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने निंदा की है।
गुरुवार को राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि उन्होंने इसके बारे में सुना है और कुछ तस्वीरें भी वायरल हुई हैं, परंतु उन्हें नहीं लगता कि मस्जिद के अंदर कोई बैठक हुई होगी। हो सकता है कि संसद से बाहर आने के बाद स्थानीय इमाम, जो सांसद भी हैं, ने उन्हें चाय या जलपान के लिए रोका हो। अन्यथा, मस्जिद के भीतर बैठक का कोई सवाल ही नहीं उठता।
हालांकि, उन्होंने मस्जिद के दुरुपयोग की कड़ी निंदा की और कहा कि यदि मस्जिद के भीतर बैठक की गई है, तो इसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। यह एक गलत कार्य है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान मस्जिदों का उपयोग ऐतिहासिक रूप से अंग्रेजों के खिलाफ छिपकर मीटिंग के लिए हुआ था, लेकिन सियासत के लिए इसका उपयोग उचित नहीं है।
उन्होंने सांसदों को सतर्क रहने की सलाह दी ताकि मस्जिद के नियमों का उल्लंघन न हो। साथ ही, उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और इंसानियत पर जोर देते हुए कहा कि टोपी पहनकर या हिंदू-मुसलमान के बीच नफरत फैलाने की कोशिश गलत है। हमें अच्छे अमल और दोस्ती को बढ़ावा देना चाहिए।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुसलमानों को मुसलमान कहलाने पर गर्व होना चाहिए, न कि शर्मिंदगी। यदि कोई मुसलमान अपनी पहचान को छिपाता है, तो हमें ऐसे मुसलमानों की आवश्यकता नहीं है।