क्या मीनापुर विधानसभा के जातीय समीकरण बदलेंगे? बाढ़, शिक्षा और बेरोजगारी हैं प्रमुख मुद्दे
सारांश
Key Takeaways
- मीनापुर विधानसभा में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण हैं।
- बाढ़ और शिक्षा प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं।
- राजद का क्षेत्र में मजबूत प्रभाव है।
- स्थानीय मुद्दे मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित करते हैं।
- विकास की रफ्तार अभी भी धीमी है।
पटना, २४ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की मीनापुर विधानसभा सीट उन क्षेत्रों में आती है, जहां गठबंधन, जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दे हर चुनाव में नई कहानी बनाते हैं। यह एक सामान्य श्रेणी की सीट है और वैशाली लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।
मीनापुर विधानसभा में मीनापुर प्रखंड के साथ-साथ बोचाहा प्रखंड के गरहा, झपहन, काफेन चौधरी, नरकटिया, नरमा, पतियासा और रामपुर जयपाल ग्राम पंचायतें शामिल हैं। यह क्षेत्र पूरी तरह ग्रामीण है और गंगा के मैदानी क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां की मिट्टी अत्यंत उपजाऊ है और यहां बड़े पैमाने पर धान, गेहूं, मक्के और गन्ने की खेती होती है। डेयरी व्यवसाय और मौसमी सब्जियों की खेती लोगों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया हैं। क्षेत्र में कोई भी शहरी जनगणना नगर नहीं है, यानी यह पूरा क्षेत्र गांवों का है।
2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, मीनापुर विधानसभा की कुल जनसंख्या ४,७७,४२६ है, जिसमें २,४९,२४६ पुरुष और २,२८,११० महिलाएं शामिल हैं। कुल मतदाताओं की संख्या २,७७,१९७ है, जिसमें १,४६,५४६ पुरुष, १,३०,६४२ महिलाएं और ९ थर्ड जेंडर शामिल हैं।
भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र मुजफ्फरपुर शहर से १८ किमी उत्तर में है। इसके आसपास के क्षेत्रों में बोचाहा (१२ किमी पूर्व), कांटी (१५ किमी पश्चिम) और मोतीपुर (२५ किमी उत्तर) शामिल हैं। यहां से राजधानी पटना ८० किमी और हाजीपुर ६५ किमी दूर है।
यहां से एनएच-28 और अन्य सड़कों के माध्यम से अच्छी संपर्क सुविधा है, जबकि मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन सबसे निकटतम प्रमुख स्टेशन है।
1951 में स्थापित मीनापुर विधानसभा सीट अब तक 17 बार चुनाव देख चुकी है। प्रारंभिक दशकों में यहां कांग्रेस का दबदबा रहा है। 1951 से 1972 के बीच कांग्रेस ने इस सीट से पांच बार जीत दर्ज की। हालांकि, बाद में राजनीति का केंद्र बदल गया और जनता दल और जदयू ने दो-दो बार, जनता पार्टी, लोकदल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने एक-एक बार जीत दर्ज की। इसके अलावा, एक बार निर्दलीय उम्मीदवार ने भी जीत हासिल की। हाल के वर्षों में, यह सीट राजद का मजबूत गढ़ बन चुकी है, जहां से राजद ने तीन बार जीत दर्ज की है।
मीनापुर विधानसभा का इतिहास बताता है कि यहां गठबंधन राजनीति सबसे बड़ा निर्णायक तत्व रही है। 2010 में जदयू के दिनेश प्रसाद ने राजद के उम्मीदवार को हराया था। लेकिन, 2015 में जदयू ने भाजपा से गठबंधन तोड़ा और महागठबंधन में शामिल हुआ, तब यह सीट राजद के खाते में चली गई। इस चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने यह सीट बरकरार रखी।
मीनापुर में यादव, कुशवाहा, ब्राह्मण, भूमिहार और दलित समुदायों का संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है। यादव और दलित समुदायों की संयुक्त जनसंख्या इसे राजद-समर्थक इलाका बनाती है, जबकि सवर्ण और कुशवाहा वोटरों का झुकाव पारंपरिक रूप से एनडीए की ओर रहा है।
मीनापुर में मुख्य रूप से बाढ़, शिक्षा और स्वास्थ्य चुनावी मुद्दे हैं। हर साल बूढ़ी गंडक नदी की बाढ़ गांवों को प्रभावित करती है। यहां की सिंचाई व्यवस्था कमजोर है, जिससे खेती की उत्पादकता प्रभावित होती है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में संसाधनों की कमी और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की अनुपलब्धता लगातार मुद्दा बनी हुई है। इसके अलावा, बेरोजगारी और पलायन युवाओं के लिए प्रमुख चिंता हैं। हाल के वर्षों में सड़क और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है, लेकिन विकास की रफ्तार अब भी धीमी है।