क्या नागपुर की दीक्षाभूमि पर आंबेडकर के अनुयायियों का सैलाब उमड़ा, जहां संविधान निर्माता ने अपनाया था बौद्ध धर्म?

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क्या नागपुर की दीक्षाभूमि पर आंबेडकर के अनुयायियों का सैलाब उमड़ा, जहां संविधान निर्माता ने अपनाया था बौद्ध धर्म?

सारांश

नागपुर की दीक्षाभूमि पर बौद्ध अनुयायियों का विशाल सैलाब उमड़ा है, जहां डॉ. आंबेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकारा था। इस साल की भीड़ ने सभी रिकॉर्ड तोड़ने की संभावना जताई है। जानें इस ऐतिहासिक दिन के महत्व और अनुयायियों की भावना के बारे में।

Key Takeaways

  • डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में बौद्ध धर्म स्वीकारा।
  • दीक्षाभूमि पर हर साल लाखों अनुयायी जुटते हैं।
  • यह स्थान सामाजिक समानता का प्रतीक है।
  • बाबासाहेब के विचार आज भी प्रेरणादायक हैं।
  • सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं।

नागपुर, 2 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय संविधान के शिल्पकार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में विजयदशमी के दिन हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म को अपनाया था। गुरुवार को उनके 69वें धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस पर, देशभर से बौद्ध अनुयायी इस अवसर को मनाने के लिए नागपुर में बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र ‘दीक्षाभूमि’ में एकत्र हुए हैं।

अनुयायियों का कहना है कि आज के समय में जब दुनिया में शांति की जरूरत है और कई देश युद्ध की स्थिति का सामना कर रहे हैं, डॉ. आंबेडकर और भगवान बुद्ध के विचार ही हमें सही मार्ग दिखा सकते हैं।

इस वर्ष दीक्षाभूमि पर भीम अनुयायियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है। पिछले वर्षों की तुलना में इस बार भीड़ ने सभी रिकॉर्ड तोड़ने की संभावना जताई जा रही है। सुबह से ही दीक्षाभूमि पर अनुयायियों का सैलाब उमड़ रहा है

सुबह से ही दीक्षाभूमि पर श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। इसे देखते हुए नागपुर पुलिस ने सुरक्षा के सख्त इंतजाम किए हैं। सड़कों पर बैरिकेड्स, सीसीटीवी कैमरे और अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किए गए हैं ताकि किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

दीक्षाभूमि पर मौजूद अनुयायियों ने बाबासाहेब के विचारों को आज की वैश्विक और राष्ट्रीय चुनौतियों का समाधान बताया।

1990 से बाबासाहेब के विचारों का अनुसरण कर रहे एक अनुयायी ने कहा, "मैंने 2005 में दीक्षाभूमि पर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। बाबासाहेब ने कहा था कि मैं भले ही हिंदू धर्म में पैदा हुआ, लेकिन इसमें मरूंगा नहीं। सम्राट अशोक ने भी दशहरे के दिन बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और उसी को आगे बढ़ाते हुए बाबासाहेब ने दीक्षा ली थी। आज के दिन लोग इसलिए आते हैं ताकि वे बाबासाहेब के बताए गए मार्ग पर चलें।"

नीलिमा हेमंता पाटिल ने कहा, "बाबासाहेब ने हमारे लिए जो किया, उसके लिए हम उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने दीक्षाभूमि आए हैं। उनके विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं।"

मानसी ने बाबासाहेब को अपनी प्रेरणा बताते हुए कहा, "वह हमारे लिए पूजनीय हैं। उन्होंने कहा था पढ़ो, संगठित हो और संघर्ष करो। आज के समाज को उनके विचारों पर चलना चाहिए। लोगों को बौद्ध धर्म की किताबें पढ़नी चाहिए ताकि उन्हें अपने इतिहास और बाबासाहेब के संघर्ष का पता चले। जब तक हम पढ़ेंगे नहीं, हमें यह नहीं समझ आएगा कि हम कहां से आए हैं और हमें कहां जाना है।"

मानसी ने कहा, "लोगों को किताबें पढ़नी चाहिए। बौद्ध धर्म की शिक्षाएं और बाबासाहेब की किताबें हमें बताती हैं कि हमें क्या करना चाहिए। जब तक हमें अपने इतिहास और बाबासाहेब के संघर्ष का ज्ञान नहीं होगा, हम आज की चुनौतियों का सामना नहीं कर पाएंगे।"

विवेक ने वर्तमान परिस्थितियों पर टिप्पणी करते हुए कहा, "आज देश और दुनिया में जो अशांति और असमानता है, उसका समाधान बाबासाहेब के विचारों और संविधान में निहित है। अगर हम उनके विचारों को अपनाएं तो एक बेहतर समाज और देश की नींव रख सकते हैं।"

विजयादशमी का दिन इसलिए भी खास है, क्योंकि ईसा पूर्व तीसरी सदी में सम्राट अशोक ने इसी दिन बौद्ध धर्म अपनाया था। इसे धम्मक्रांति के रूप में जाना जाता है। उसी प्रेरणा से डॉ. आंबेडकर ने भी विजयादशमी के दिन धर्म परिवर्तन का निर्णय लिया था। आज दीक्षाभूमि बाबासाहेब के अनुयायियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।

हर साल विजयादशमी पर, देशभर से लाखों अनुयायी दीक्षाभूमि पर श्रद्धा और उत्साह के साथ पहुंचते हैं। यह स्थान न केवल बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पवित्र है, बल्कि सामाजिक समानता और शांति के संदेश का भी प्रतीक है।

Point of View

बल्कि सामाजिक समानता और शांति का संदेश भी फैला रहे हैं। यह एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है।
NationPress
02/10/2025

Frequently Asked Questions

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने बौद्ध धर्म कब अपनाया?
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 1956 में विजयदशमी के दिन बौद्ध धर्म अपनाया था।
दीक्षाभूमि का महत्व क्या है?
दीक्षाभूमि बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है, जहां लाखों अनुयायी हर साल विजयादशमी पर एकत्र होते हैं।
आज के दिन का सामाजिक सन्देश क्या है?
आज का दिन सामाजिक समानता और शांति का प्रतीक है, जिससे हम डॉ. आंबेडकर के विचारों को समझ सकते हैं।
क्या दीक्षाभूमि पर सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं?
जी हां, नागपुर पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं, जिसमें बैरिकेड्स और अतिरिक्त पुलिस बल शामिल है।
अनुयायी इस दिन को कैसे मनाते हैं?
अनुयायी इस दिन को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं, साथ ही बाबासाहेब के विचारों का सम्मान करते हैं।