क्या राजनीति और साहित्य में नारी शक्ति की मिसाल नंदिनी सत्पथी हैं?

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क्या राजनीति और साहित्य में नारी शक्ति की मिसाल नंदिनी सत्पथी हैं?

सारांश

नंदिनी सत्पथी, ओडिशा की पहली महिला मुख्यमंत्री और एक प्रसिद्ध लेखिका, ने भारतीय राजनीति और साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका साहस और संघर्ष आज भी प्रेरणा देते हैं। जानिए उनके अद्वितीय सफर के बारे में।

Key Takeaways

  • नंदिनी सत्पथी ने ओडिशा की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बनाया।
  • उन्होंने साहित्य में भी अपनी छाप छोड़ी।
  • उनका जीवन साहस और संघर्ष का प्रतीक है।

नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। ओडिशा (जिसे पहले उड़ीसा भी कहा जाता था) की आयरन लेडी और साहित्य की प्रभावशाली आवाज नंदिनी सत्पथी भारतीय राजनीति और साहित्य के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक नाम मानी जाती हैं। वे न केवल राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली लेखिका भी थीं। उनकी लेखनी ने उड़िया साहित्य को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया। उनका जीवन साहस, संघर्ष और समाज सेवा का अद्वितीय मिश्रण था।

कटक के पीथापुर में 9 जून 1931 को जन्मी नंदिनी सत्पथी कालिंदी चरण पाणिग्रही की सबसे बड़ी बेटी थीं। उनके चाचा भगवती चरण पाणिग्रही ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राज्य शाखा की स्थापना की थी। मात्र आठ वर्ष की आयु में, नंदिनी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ साहस दिखाते हुए कटक की दीवारों पर आज़ादी के नारे लिखे और यूनियन जैक को उतार फेंका।

इस साहसिक कार्य के लिए उन्हें ब्रिटिश पुलिस की क्रूरता का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका हौसला कभी कमजोर नहीं हुआ।

1962 में, नंदिनी राज्य में कांग्रेस पार्टी की प्रमुख नेता के रूप में उभरीं। महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए चलाए गए आंदोलन के तहत उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया।

1966 में, जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं, तब नंदिनी सत्पथी को सूचना और प्रसारण मंत्रालय में मंत्री बनाया गया। 1972 में, बीजू पटनायक के कांग्रेस छोड़ने के बाद, वह मुख्यमंत्री बनीं और वह दो बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली पहली महिला थीं।

आपातकाल के दौरान, नंदिनी ने इंदिरा गांधी की नीतियों का विरोध किया और 1976 में मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया। 1977 में, उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी पार्टी में शामिल हुईं। बाद में, 1989 में राजीव गांधी के आग्रह पर वह कांग्रेस में वापस आईं और 2000 तक ढेंकनाल से विधायक रहीं।

नंदिनी सत्पथी ने साहित्य में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी। उड़िया मासिक पत्रिका ‘कलाना’ की संपादक और लेखक के रूप में उन्होंने साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दीं। उनकी कई कृतियों का अनुवाद विभिन्न भाषाओं में किया गया। तस्लीमा नसरीन के उपन्यास ‘लज्जा’ और अमृता प्रीतम की आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ का उड़िया अनुवाद उनका अंतिम प्रमुख कार्य था। 1998 में उन्हें साहित्य भारती सम्मान से सम्मानित किया गया।

4 अगस्त 2006 को भुवनेश्वर में उनका निधन हुआ। फिर भी, उनकी विरासत आज भी लोगों को प्रेरित करती है।

Point of View

नंदिनी सत्पथी का जीवन हमें यह सिखाता है कि महिलाओं की शक्ति और नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनकी कहानी न केवल ओडिशा, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणास्रोत है।
NationPress
03/08/2025

Frequently Asked Questions

नंदिनी सत्पथी ने किस वर्ष मुख्यमंत्री पद की शपथ ली?
नंदिनी सत्पथी ने 1972 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
नंदिनी सत्पथी का साहित्यिक योगदान क्या है?
नंदिनी सत्पथी ने उड़िया मासिक पत्रिका 'कलाना' की संपादक के रूप में साहित्य को समृद्ध किया और कई कृतियों का अनुवाद किया।