क्या नीरजा भनोट ने 23 की उम्र में दुनिया को हैरान किया और सैकड़ों जिंदगियां बचाईं?

सारांश
Key Takeaways
- नीरजा भनोट का साहस और बलिदान हमें प्रेरित करता है।
- उन्होंने 359 यात्रियों की जान बचाई।
- उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले।
- नीरजा की कहानी साहस और मानवता का प्रतीक है।
- उनकी जिंदगी पर फिल्म बनी, जो उनकी प्रेरणा को उजागर करती है।
नई दिल्ली, 6 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जीवन को बड़ा होना चाहिए, लंबा नहीं। यह प्रसिद्ध संवाद 1971 में आई फिल्म 'आनंद' में राजेश खन्ना ने कहा था। ऐसे कुछ व्यक्ति होते हैं जो अपनी जीवित उपस्थिति के बिना भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराते हैं। नीरजा भनोट एक ऐसी ही प्रेरणादायक शख्सियत हैं।
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ में हुआ। उनके पिता पत्रकार थे और मां एक कुशल गृहिणी। नीरजा हमेशा से ही बुद्धिमान और साहसिक रही हैं। उन्होंने बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और मॉडलिंग तथा फैशन डिजाइनिंग में रुचि दिखाई।
महज 22 वर्ष की आयु में, उन्होंने पैन एम एयरलाइंस में फ्लाइट अटेंडेंट के रूप में कार्य करना शुरू किया। अपनी मेहनत से वह जल्द ही सीनियर फ्लाइट सुपरवाइजर बन गईं। यात्रा करना उनका शौक था, लेकिन दुर्भाग्य से उनका सपना अधूरा रह गया।
5 सितंबर 1986 को, पैन एम की फ्लाइट 73, जो मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही थी, कराची में उतरी। वहां चार आतंकवादियों ने विमान को हाईजैक कर लिया। ये आतंकी अबू निदाल संगठन से जुड़े थे और उनका लक्ष्य इजरायली यात्रियों को बंधक बनाना था। विमान में 379 यात्री और 13 क्रू मेंबर थे।
हथियारबंद हाईजैकर्स ने विमान पर कब्जा कर लिया और पायलट को भारत लौटने का आदेश दिया। लेकिन पायलट और को-पायलट ने जान बचाने के लिए विमान छोड़ दिया। इसलिए, यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीनियर क्रू मेंबर नीरजा पर आ गई। संकट के समय में, उन्होंने साहस और समझदारी से काम लिया। उन्होंने यात्रियों को शांत रखा और उनके पासपोर्ट इकट्ठा किए, खासकर इजरायली यात्रियों के लिए।
नीरजा ने इजरायली यात्रियों के पासपोर्ट छिपा दिए या उन्हें गलत नामों से छिपाया ताकि आतंकी उन्हें पहचान न सकें। जब ईंधन खत्म होने लगा और आतंकियों ने गोली चलानी शुरू की, नीरजा ने आपातकालीन निकास गेट खोला और यात्रियों की मदद की।
तीन बच्चों को बचाने के प्रयास में नीरजा को एक आतंकवादी ने पीठ में गोली मार दी। इस बहादुर लड़की ने केवल 23 वर्ष की आयु में 359 यात्रियों की जान बचाई। हाईजैकिंग में 20 लोग मारे गए थे।
भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया, जो नागरिकों के लिए सर्वोच्च शांति पुरस्कार है। अमेरिका ने उन्हें जस्टिस फॉर ऑल इंटरनेशनल अवॉर्ड, पाकिस्तान ने तमगा-ए-इंसानियत, और ब्रिटेन ने स्पेशल करेज अवॉर्ड दिया।
नीरजा अपने साहस और वीरता के कारण विश्वभर के युवाओं के लिए एक आदर्श हैं। 2016 में उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म 'नीरजा' बनी थी, जिसमें उनका किरदार सोनम कपूर ने निभाया।
नीरजा का निधन उनके जन्मदिन से 2 दिन पहले हो गया। लेकिन, मात्र 23 वर्ष की उम्र में, उन्होंने मानवता के लिए अपना बलिदान देकर अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया।