क्या नूरजहां की आवाज़ लता मंगेशकर को भी मोहित करती थी?

सारांश
Key Takeaways
- नूरजहां ने लगभग 10,000 गाने रिकॉर्ड किए।
- उनका असली नाम अल्लाह राखी वसई था।
- उन्होंने अपने करियर की शुरुआत भारत में की थी।
- नूरजहां और लता मंगेशकर की दोस्ती अद्वितीय थी।
- उन्हें कई पुरस्कार मिले, जैसे प्राइड ऑफ परफॉरमेंस।
नई दिल्ली, 20 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत की सबसे प्रसिद्ध गायिकाओं में से एक लता मंगेशकर को उनकी मधुर आवाज के लिए 'स्वर कोकिला' और 'मेलोडी क्वीन' के उपनाम से जाना जाता था, लेकिन सुरों की मलिका लता मंगेशकर जिस आवाज की फैन थीं, वह थी पाकिस्तान की प्रसिद्ध गायिका नूरजहां की, जिन्होंने अपने लंबे करियर में लगभग 10,000 गाने रिकॉर्ड किए।
1946 में आई बॉलीवुड फिल्म अनमोल घड़ी के 'आवाज दे कहां है' गाने का स्वर देने वाली नूरजहां का नाम किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उनकी सुरीली आवाज, अद्भुत गायिकी और बेमिसाल खूबसूरती के चलते उन्हें अपने समय की सबसे प्रसिद्ध हस्तियों में गिना जाता था।
नूरजहां का जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनका असली नाम अल्लाह राखी वसई था, लेकिन फिल्म उद्योग में उन्हें नूरजहां के नाम से पहचान मिली। संगीत के प्रति बचपन से झुकाव होने के कारण उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और बहुत कम उम्र में मंच पर गाना शुरू कर दिया। उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि लोग उन्हें मल्लिका-ए-तरन्नुम यानी तरन्नुम की रानी कहकर पुकारने लगे।
नूरजहां ने अपनी करियर की शुरुआत भारत में की और फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ गायकी का जादू भी बिखेरा। उनकी आवाज में मिठास और गहराई इतनी थी कि सुनने वाले दीवाने हो जाते थे।
फिल्में जैसे अनमोल घड़ी (1946), जुगनू (1947) और मिर्जा साहिबान (1947) में उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर हैं। बंटवारे से पहले, वह भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी सितारों में से एक थीं, लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद उन्हें पाकिस्तान में बसना पड़ा। वहां भी उन्होंने अपनी गायकी से इतिहास रचा और पाकिस्तान की पहली महिला फिल्म निर्देशक बनीं।
नूरजहां की पहचान केवल गायिका या अभिनेत्री के रूप में ही नहीं, बल्कि एक बेहद बोल्ड और आत्मनिर्भर महिला के रूप में भी रही। उन्होंने दो शादियां कीं और अपने बच्चों के साथ जिम्मेदारियों को निभाया। उनका निजी जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन पेशेवर जीवन में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी खूबसूरती और आत्मविश्वास ने उन्हें खास बना दिया।
भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर और नूरजहां की दोस्ती संगीत जगत की सबसे यादगार कहानियों में से एक है। लता जब फिल्मों में गाना शुरू कर रही थीं, तब नूरजहां उनके लिए प्रेरणा थीं। दिलचस्प बात यह है कि नूरजहां लता को प्यार से लत्तो कहकर बुलाती थीं। दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि बंटवारे के बाद जब नूरजहां पाकिस्तान चली गईं, तब भी यह रिश्ता बरकरार रहा।
1951 में प्रसिद्ध कंपोजर सी. रामचंद्र, लता और नूरजहां से एक डुएट गीत रिकॉर्ड करवाना चाहते थे। इसके लिए वे लता को लेकर अटारी बॉर्डर तक पहुंचे, लेकिन वीजा और पासपोर्ट की समस्या के कारण उन्हें आगे नहीं जाने दिया गया।
इस दौरान नूरजहां भी बॉर्डर पर पहुंच गईं और वहां दोनों की मुलाकात हुई। सी. रामचंद्र ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जैसे ही लता और नूरजहां मिलीं, वे फूट-फूटकर रोने लगीं। यह दृश्य बेहद भावुक था। दोनों गायिकाएं समझ चुकी थीं कि सरहदें देशों को बांट सकती हैं, लेकिन दिलों और दोस्ती को नहीं।
नूरजहां की दोस्ती केवल लता मंगेशकर तक सीमित नहीं थी। वह धर्मेंद्र जैसे कलाकारों की भी अच्छी मित्र थीं और फिल्म उद्योग के कई लोगों के साथ उनके खास रिश्ते रहे। उनके बारे में कई किस्से आज भी चर्चा का हिस्सा हैं।
लंबे करियर के दौरान नूरजहां ने उर्दू, पंजाबी, सिंधी सहित कई भाषाओं में गाने गाए। उनकी गायकी की ताकत यह थी कि चाहे सुर ऊंचे हों या नीचे, वे सहजता से गा लेती थीं। यही वजह थी कि उन्हें सुनने वाले आज भी उनकी आवाज में जादू महसूस करते हैं। पाकिस्तान में उन्हें प्राइड ऑफ परफॉरमेंस, तमगा-ए-इम्तियाज जैसे कई सम्मान मिले।
कराची में 23 दिसंबर 2000 को नूरजहां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए और उन्हें राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया। उनकी आवाज, उनकी फिल्में और उनके किस्से लोगों की यादों में आज भी जिंदा हैं।