क्या एनआरआई को दिल्ली हाई कोर्ट से इनकम टैक्स रिटर्न में देरी के लिए झटका मिला?
सारांश
Key Takeaways
- कानून की जानकारी न होना बहाना नहीं है।
- समयसीमा का पालन अनिवार्य है।
- असाधारण परिस्थितियों का साबित करना कठिन है।
- कोर्ट का निर्णय स्पष्ट और सख्त है।
- टैक्स प्राधिकरण द्वारा दिए गए कारण स्पष्ट हैं।
नई दिल्ली, 30 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली हाई कोर्ट ने कनाडा में निवास करने वाले एक एनआरआई की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने आकलन वर्ष 2020-21 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) फाइल करने में हुई देरी को माफ करने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ता, जो ब्रिटिश कोलंबिया में एक कनाडाई नागरिक है, ने समय पर रिटर्न न भरने के कारणों में भारतीय टैक्स कानूनों की जानकारी की कमी, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और कोविड-19 से संबंधित यात्रा पाबंदियों का उल्लेख किया, जबकि उसने संबंधित वर्ष में भारत में संपत्ति की बिक्री और बैंक ब्याज से इनकम अर्जित की थी।
जस्टिस वी. कामेश्वर राव और विनोद कुमार की पीठ ने फैसला सुनाया कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा 119(2)(बी) के तहत इस मामले में कोई आधार नहीं है और प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त, इंटरनेशनल टैक्सेशन द्वारा याचिकाकर्ता की देरी को माफ करने की अर्जी खारिज करने का आदेश बरकरार रखा।
जस्टिस राव के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि जिस इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) के लिए देरी माफ करने की मांग की गई है, वह आकलन वर्ष 2020-21 से संबंधित है और अर्जी जून 2025 में दायर की गई थी।"
अपील को खारिज करते हुए, दिल्ली हाई कोर्ट ने यह स्थापित सिद्धांत दोहराया कि "कानून की जानकारी न होना कोई बहाना नहीं हो सकता" और कहा कि इनकम टैक्स एक्ट के तहत निर्धारित समयसीमा को अस्पष्ट या सामान्य आधार पर कम नहीं किया जा सकता।
आदेश में कहा गया है, "तय कानूनी सीमाओं का पालन करना अनिवार्य है क्योंकि यह असेसमेंट को समय पर पूरा करना सुनिश्चित करता है और केवल कहने पर समय बढ़ाने का अधिकार नहीं मांगा जा सकता।"
जस्टिस राव की पीठ ने कहा कि टैक्स प्राधिकरण ने यह निष्कर्ष निकालने के लिए "स्पष्ट और ठोस कारण" प्रस्तुत किए हैं कि याचिकाकर्ता किसी भी असाधारण परिस्थिति को साबित करने में असफल रहा है जिसके लिए माफी दी जा सके।
कोर्ट ने कहा, "हम अधिकारी द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से सहमत हैं और इसमें दखल देने का कोई कारण नहीं पाते हैं। चूंकि इसमें कोई मेरिट नहीं है, याचिका खारिज की जाती है।"