क्या ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे बिखरे हर कंकड़ शिव स्वरूप हैं?

सारांश
Key Takeaways
- ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी के किनारे दो ज्योतिर्लिंग हैं: ओंकारेश्वर और ममलेश्वर.
- यहां हर पत्थर शिवलिंग स्वरूप हो जाता है।
- महादेव और माता पार्वती रात में यहां आते हैं।
- यह स्थान 68 तीर्थों का घर है।
- नर्मदा नदी को जीवन दायिनी और मोक्ष दायिनी माना जाता है।
नई दिल्ली, 3 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। गंगा से भी अधिक पावन मानी जाने वाली नर्मदा नदी, इसके किनारे स्थित ओंकार पर्वत और इस पर्वत पर निवास करने वाले एकलिंगनाथ यानि महादेव के लिए यह स्थान सचमुच एक दिव्य स्थल है। यहां नर्मदा नदी के दोनों किनारों पर दो प्रमुख मंदिर हैं: ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। ये दोनों ज्योतिर्लिंग मिलकर एक होते हैं और ओंकारममलेश्वर कहलाते हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में इसका स्थान चौथा है।
कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जहां हर रात महादेव और माता पार्वती सोने के लिए आते हैं और यहां चौसर भी खेलते हैं।
मान्यता है कि रात में भगवान शिव यहां विश्राम करते हैं और चौसर खेलते हैं। यही कारण है कि रात के समय मंदिर में चौपड़ बिछाई जाती है और मंदिर के कपाट बंद होने के बाद भी वहाँ परिंदा नहीं जा सकता। सुबह में चौसर के पासे बिखरे मिलते हैं, जैसे रात में किसी ने खेला हो।
इस मंदिर की एक अनोखी आरती होती है, जिसे न कोई भक्त देख सकता है और न ही कोई अन्य कर्मचारी। यह ओंकारेश्वर की शयन आरती है, जिसे एक पुजारी गर्भगृह में अकेले करता है। इस समय मंदिर के कपाट भक्तों के लिए बंद रहते हैं। ओंकारेश्वर में 68 तीर्थ हैं, और यहां 33 कोटि देवी-देवताओं का निवास माना जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित है। यह नर्मदा नदी में मांधाता द्वीप या शिवपुरी नामक द्वीप पर है। मान्यता है कि यहां स्थापित लिंग प्राकृतिक है। ओंकारेश्वर नर्मदा के दाहिने तट पर है, जबकि ममलेश्वर बाएं तट पर है।
यहां की पवित्र नर्मदा जो ओंकारममलेश्वर महादेव के चरणों को धोती है, के तट पर हर पत्थर शिवलिंग स्वरूप हो जाता है। नर्मदा नदी के शिवलिंग को बाणलिंग भी कहा जाता है, जिन्हें कहीं भी स्थापित किया जा सकता है।
महादेव के आशीर्वाद से नर्मदा को पवित्र नदियों की श्रेणी में रखा गया है। यह दुनिया में एकमात्र ऐसी नदी है जो अपनी दिशा के विपरीत बहती है। इसे जीवन दायिनी और मोक्ष दायिनी मानी जाती है।
पुराणों के अनुसार, शिव से ही नर्मदा की उत्पत्ति हुई है और इसलिए उन्हें शिव की पुत्री माना गया है। महादेव के निर्देश पर धरती पर आने के कारण मां नर्मदा को शंकरी नर्मदा भी कहा जाता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में इसके बारे में वर्णित है।
कावेरिकानर्मदयोः पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय |
सदैवमान्धातृपुरे वसन्तमोङ्कारमीशं शिवमेकमीडे ||
जो सत्पुरुषों को संसारसागर से पार उतारने के लिए कावेरी और नर्मदा के पवित्र संगम के निकट मान्धाता के पुर में सदा निवास करते हैं, उन अद्वितीय कल्याणमय भगवान ऊंकारेश्वर का मैं स्तवन करता हूं।
ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग परिसर एक पांच मंजिला इमारत है। इसकी प्रथम मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर का मंदिर है, तीसरी मंजिल पर सिद्धनाथ महादेव, चौथी मंजिल पर गुप्तेश्वर महादेव और पांचवीं मंजिल पर राजेश्वर महादेव का मंदिर है।
यहां पास में कुबेर भंडारी मंदिर है, जहां कुबेर ने तपस्या की थी। यह नदी कुबेर मंदिर के बगल से बहकर नर्मदाजी में मिलती है। इसे नर्मदा कावेरी का संगम कहते हैं।
सिद्धनाथ मंदिर प्रारंभिक मध्यकालीन ब्राह्मण वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।
यहां गौरी सोमनाथ मंदिर भी है, जो खजुराहो मंदिर समूह से मिलता-जुलता है। इसे परमारों ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से लगभग 4 किमी दूर केदारेश्वर मंदिर स्थित है।
यही पास में गोविंदा भगवत्पाद गुफाएं हैं, जहां आदि शंकराचार्य को ज्ञान प्राप्त हुआ था।
इसके पास और भी कई शिवलिंग हैं, जैसे अंधकेश्वर, झुमेश्वर और नवग्रहेश्वर। इसके अतिरिक्त, जैन धर्म का तीर्थ सिद्धवरकूट भी पास में है।