क्या आप जानते हैं पश्चिम बंगाल के 12 चमत्कारी धामों के बारे में?

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क्या आप जानते हैं पश्चिम बंगाल के 12 चमत्कारी धामों के बारे में?

सारांश

पश्चिम बंगाल में शक्ति उपासना का अद्भुत इतिहास है। यहाँ के 12 शक्तिपीठों की महिमा सदियों से श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही है। यह शक्तिपीठ न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि इनकी कथाएँ भी अद्वितीय हैं। जानिए इन शक्तिपीठों की विशेषताएँ और मान्यताएँ।

Key Takeaways

  • पश्चिम बंगाल में 12 प्रमुख शक्तिपीठ हैं।
  • यहाँ की धार्मिक परंपरा सदियों पुरानी है।
  • नवरात्रि और दुर्गापूजा पर विशेष आयोजन होते हैं।
  • हर शक्तिपीठ की अपनी एक विशेष कथा है।
  • श्रद्धालुओं की संख्या हर वर्ष लाखों में होती है।

कोलकाता, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पश्चिम बंगाल शाक्त धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ सदियों से शक्ति उपासना की परंपरा चली आ रही है। बंगाल को शाक्त साधना के लिए विशेष महत्व प्राप्त है। प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में उल्लिखित 51 शक्तिपीठों में से 12 पवित्र शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल में स्थित हैं। नवरात्रि और दुर्गापूजा के अवसर पर यहाँ विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं और लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।

आइए विस्तार से जानते हैं इन 12 शक्तिपीठों के बारे में...

बहुला शक्तिपीठ: यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के केतुग्राम के निकट अजय नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यहाँ माता सती का बायां हाथ गिरा था। देवी बहुला के रूप में पूजा जाती हैं और भैरव को भीरुक कहा जाता है।

मंगल चंद्रिका शक्तिपीठ: यह शक्तिपीठ वर्धमान जिले के उजानी गाँव में स्थित है। यहाँ माता की दाईं कलाई गिरी थी। देवी को मंगल चंद्रिका रूप में पूजा जाता है। भक्त यहाँ विशेषकर मंगलवार और नवरात्रि पर आते हैं।

त्रिस्रोता-भ्रामरी शक्तिपीठ: जलपाइगुड़ी जिले के सालबाड़ी ग्राम में स्थित इस शक्तिपीठ में माता का बायां पैर गिरा था। यहाँ देवी भ्रामरी और शिव अंबर के रूप में पूजे जाते हैं। भ्रामरी को मधुमक्खियों की देवी माना जाता है।

युगाद्या शक्तिपीठ: वर्धमान जिले के खीरग्राम में स्थित इस शक्तिपीठ में माता सती का दाहिना पैर गिरा था। यहाँ की शक्ति युगाद्या कहलाती है और शिव को क्षीरखंडक कहा जाता है।

कालीपीठ (कालीघाट): कोलकाता का कालीघाट शक्तिपीठ सबसे प्रसिद्ध है। यहाँ माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। देवी कालिका के रूप में पूजी जाती हैं।

वक्रेश्वर शक्तिपीठ: बीरभूम जिले के दुबराजपुर में यह पीठ स्थित है। यहाँ पापहर नदी के तट पर माता का भ्रूमध्य गिरा था। देवी महिषमर्दिनी के रूप में पूजी जाती हैं।

देवगर्भा शक्तिपीठ: यह शक्तिपीठ बीरभूम जिले के बोलारपुर के निकट कोपई नदी के तट पर है। यहाँ माता की अस्थि गिरी थी। देवी देवगर्भा के रूप में पूजी जाती हैं।

विभाष शक्तिपीठ: पूर्वी मेदिनीपुर जिले के तामलुक में स्थित है। यहाँ रूपनारायण नदी के तट पर माता का बायां टखना गिरा था। देवी कपालिनी कहलाती हैं।

अट्टहास शक्तिपीठ: वर्धमान जिले के लाभपुर स्टेशन के निकट अट्टहास स्थान पर माता का अधरोष्ठ गिरा था। यहाँ देवी फुल्लरा के रूप में पूजी जाती हैं।

नंदीपुर शक्तिपीठ: बीरभूम जिले के सैंथिया स्टेशन के समीप नंदीपुर गाँव में स्थित है। यहाँ माता का गले का हार गिरा था।

रत्नावली शक्तिपीठ: हुगली जिले में रत्नाकर नदी के तट पर स्थित है। यहाँ माता का दाहिना कंधा गिरा था। देवी कुमारी रूप में पूजी जाती हैं।

नलहाटी शक्तिपीठ: बीरभूम जिले के नलहाटी स्टेशन के पास स्थित है। यहाँ माता के पैर की हड्डी गिरी थी। देवी कालिका रूप में पूजी जाती हैं।

Point of View

बल्कि संस्कृति और परंपरा का भी अद्वितीय मिश्रण पेश करते हैं। यह धार्मिक स्थलों की महत्ता को दर्शाते हैं, जहाँ श्रद्धालु आस्था और भक्ति के साथ आते हैं।
NationPress
22/09/2025

Frequently Asked Questions

पश्चिम बंगाल में कितने शक्तिपीठ हैं?
पश्चिम बंगाल में कुल 12 शक्तिपीठ हैं, जो धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
नवरात्रि पर इन शक्तिपीठों की क्या विशेषता है?
नवरात्रि के दौरान यहाँ विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं, जहाँ लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
कालीघाट शक्तिपीठ का महत्व क्या है?
कालीघाट शक्तिपीठ को विश्वभर में प्रसिद्धि प्राप्त है और यहाँ देवी कालिका की पूजा की जाती है।
क्या ये शक्तिपीठ केवल धार्मिक पर्यटन के लिए हैं?
इन शक्तिपीठों का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर भी अद्वितीय है।
इन शक्तिपीठों की कहानी क्या है?
प्रत्येक शक्तिपीठ की अपनी एक अद्भुत कथा है, जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।