क्या प्रीतम सिवाच 'द्रोणाचार्य अवॉर्ड' पाने वाली पहली महिला हॉकी कोच हैं जिन्होंने समाज से लड़ा?

सारांश
Key Takeaways
- प्रीतम सिवाच ने समाज के खिलाफ जाकर अपने सपनों को पूरा किया।
- उन्होंने 'द्रोणाचार्य अवॉर्ड' जीता, जो उनकी मेहनत और समर्पण का प्रतीक है।
- उनकी कोचिंग ने कई खिलाड़ियों को ओलंपिक में खेलने का अवसर दिया।
- प्रीतम का जीवन संघर्ष और सफलता की कहानी है।
- उन्होंने भारतीय महिला हॉकी को नई पहचान दिलाई।
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच ने अपने अद्वितीय खेल प्रदर्शन और नेतृत्व क्षमताओं से देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने भारत की महिला हॉकी टीम को चैंपियन बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। प्रीतम सिवाच देश की पहली महिला हॉकी कोच हैं, जिन्हें 'द्रोणाचार्य अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया।
2 अक्टूबर 1974 को गुरुग्राम के झाड़सा में जन्मी प्रीतम सिवाच ने मात्र 13 वर्ष की आयु में हॉकी खेलना शुरू किया। उस समय वह 7वीं कक्षा में थीं। जब उन्होंने हॉकी स्टिक थामी, तो गांव के लोगों से कई ताने सुनने पड़े, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की।
जब प्रीतम 10वीं कक्षा में थीं, तब परिवार चाहता था कि उनकी शादी हो जाए, लेकिन प्रीतम ने परिवार से कुछ समय मांगा। वह अपने सपनों की उड़ान भरना चाहती थीं। उन्होंने परिवार से यह तक कह दिया कि अगर जल्दी शादी करवाई गई, तो वह घर से भाग जाएंगी। इस तरह उन्हें 2 साल की मोहलत मिल गई।
साल 1990 में प्रीतम ने पहली बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेते हुए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब जीता।
साल 1992 में प्रीतम ने जूनियर एशिया कप में भाग लिया। यह उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता थी। उन्हें पहले ही अंतरराष्ट्रीय मुकाबले में 'बेस्ट प्लेयर' का खिताब मिला। इसी वर्ष प्रीतम ने रेलवे ज्वाइन किया, जिसके बाद उन्हें विश्वास हो गया कि वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए समाज से लड़ सकती हैं।
हालांकि, कुछ समय बाद उनकी शादी हो गई। भले ही इसके बाद उन्हें सोनीपत जाना पड़ा, लेकिन पति और मायके से उन्हें भरपूर समर्थन मिला।
प्रीतम ने 1998 में एशियाड में भारत की कमान संभालते हुए देश को रजत पदक दिलाया। इसके बाद, साल 2002 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने में प्रीतम की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
साल 2002 में प्रीतम ने कोचिंग शुरू करने का निर्णय लिया। प्रीतम सिवाच कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में भारतीय महिला हॉकी टीम की ट्रेनर थीं। आज वह सोनीपत में 'द प्रीतम सिवाच एकेडमी' चलाती हैं, जहां से प्रशिक्षण लेकर कुछ खिलाड़ियों ने ओलंपिक में भी खेला है।
हॉकी में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए प्रीतम सिवाच को साल 1998 में 'अर्जुन अवॉर्ड' से सम्मानित किया गया, जिसके बाद साल 2021 में उन्हें 'द्रोणाचार्य पुरस्कार' से नवाजा गया।