क्या राहुल गांधी के सेना वाले बयान पर राजेश ठाकुर का समर्थन सही है?
सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी का सेना से संबंधित बयान विवादास्पद है।
- राजेश ठाकुर ने समर्थन दिया है कि लोगों को भावना समझनी चाहिए।
- भाजपा पर दलितों और पिछड़ों को निशाना बनाने का आरोप है।
- राजनीति में भावनाओं का महत्व है।
- सभी पक्षों की आवाज़ों को सुनना चाहिए।
रांची, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा सेना को लेकर दिए गए बयान के बाद राजनीतिक माहौल गरम हो गया है। झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने राहुल गांधी का समर्थन करते हुए कहा कि लोगों को उनकी भावना को समझना चाहिए, न कि इस पर राजनीति करनी चाहिए।
राजेश ठाकुर ने समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत करते हुए कहा, "उनकी भावना को समझने की आवश्यकता है। कई बार लोग सिर्फ राजनीति करते हैं। उनके अनुसार, जो दलित और पिछड़े हैं, उन्हें आगे लाने की जरूरत है। इस पर उन्होंने क्या गलत कहा है?"
भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी हर मुद्दे को अपनी तरीके से पेश करती है। भाजपा को यह बर्दाश्त नहीं है कि कोई दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की बात करे। पहले वे अल्पसंख्यकों को टारगेट करते थे, अब दलितों और पिछड़ों को भी निशाना बना रहे हैं।"
बिहार के औरंगाबाद जिले के कटुंबा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि देश की सेना और बड़े संस्थान केवल 10 प्रतिशत जनसंख्या के नियंत्रण में हैं, जबकि बाकी 90 प्रतिशत लोग—दलित, पिछड़े, अत्यंत पिछड़े और अल्पसंख्यक—कहीं भी प्रतिनिधित्व नहीं पाते।
राजेश ठाकुर ने भाजपा नेता अमित मालवीय के सोशल मीडिया पोस्ट पर कहा, "यह प्रधानमंत्री की शिक्षा का परिणाम है। उन्होंने हाल ही में कट्टा और कनपटी की बात की थी। बच्चों में क्या संदेश गया, इसे समझने की जरूरत है। अमित मालवीय बिहार को बदनाम करना चाहते हैं। बिहारी इस बदनामी को बर्दाश्त नहीं कर सकते।"
असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा के ओसामा वाले बयान पर झारखंड कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने कहा, "हेमंत बिस्वा सरमा जहां-जहां जाएंगे, वहां-वहां हमारी जीत होगी। झारखंड में उन्होंने कितना लाभ पहुंचाया है, यह किसी से छिपा नहीं है। घुसपैठिया कहते रह गए और क्या हासिल हुआ? 25 से 21 पर आ गए। अब बिहार जा रहे हैं। वहां भगवान राम और सीता को राजनीति में घसीट रहे हैं। भगवान राम और सीता से राजनीति का क्या लेना-देना है? लोग उन्हें आस्था का केंद्र मानते हैं।