क्या सहरसा विधानसभा सीट पर फिर से इतिहास लिखा जाएगा?

सारांश
Key Takeaways
- सहरसा विधानसभा सीट बिहार विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
- यह क्षेत्र कोसी नदी के किनारे बसा है और बाढ़ से प्रभावित होता है।
- भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता है।
- सहरसा की साक्षरता दर केवल 54.57% है।
- यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल लोगों की आस्था का केंद्र हैं।
पटना, 19 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की गतिविधियां अब तेज हो गई हैं। इस बीच, सहरसा विधानसभा सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। कोसी नदी के किनारे बसा सहरसा, जिसका नाम संस्कृत शब्द ‘सहस्रधारा’ से लिया गया है, बिहार की राजनीति में एक विशेष पहचान रखता है। यहां की भौगोलिक परिस्थितियां और सामाजिक समीकरण इसे चुनावी दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
कोसी, बागमती और गंडक नदियों से घिरा यह क्षेत्र हर साल बाढ़ की समस्या का सामना करता है। पुल और सड़कें टूटने से जहां जीवन अस्त-व्यस्त होता है, वहीं यही बाढ़ मिट्टी को उपजाऊ भी बनाती है। यही कारण है कि सहरसा मक्का और मखाना उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है, जहां से हर साल लाखों टन मक्का का निर्यात होता है।
सहरसा मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है, जहां मैथिली और हिंदी प्रमुख भाषाएं हैं। हालांकि बिहार का 15वां बड़ा शहर होने के बावजूद यहां की साक्षरता दर केवल 54.57 प्रतिशत है।
ऐतिहासिक रूप से, यह सीट शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का गढ़ रही, लेकिन समय के साथ भाजपा ने यहां अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। पिछले पांच चुनावों में भाजपा चार बार विजयी रही है, जबकि राजद को केवल 2015 में जीत मिली। इससे पूर्व, जनता दल ने दो बार और जनता पार्टी तथा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने एक-एक बार यहां प्रतिनिधित्व किया था।
2008 की परिसीमन प्रक्रिया के बाद सहरसा लोकसभा सीट को खत्म कर मधेपुरा में मिला दिया गया, जिसे स्थानीय लोग राजनीतिक प्रतिशोध मानते हैं। इस बदलाव के बाद मधेपुरा जदयू का गढ़ बन गया। वहीं, सहरसा विधानसभा सीट पर भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिलता है। 2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां की अनुमानित जनसंख्या 6.42 लाख है, जिसमें 3.75 लाख मतदाता शामिल हैं। इनमें 1.95 लाख पुरुष, 1.80 लाख महिलाएं और 8 थर्ड जेंडर मतदाता हैं।
सहरसा न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध है। यह कभी मिथिला साम्राज्य का हिस्सा रहा, जहां राजा जनक का उल्लेख मिलता है। महिषी में मंडन मिश्र और शंकराचार्य के बीच शास्त्रार्थ इसी भूमि पर हुआ था। यहां चंडी मंदिर, कात्यायनी मंदिर और तारा मंदिर की धार्मिक मान्यता दूर-दूर तक फैली है। बाबाजी कुटी और मत्स्यगंधा का रक्तकाली मंदिर यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल हैं, जो चुनावी रुझानों में भी अपनी छाप छोड़ते हैं।
आर्थिक दृष्टि से, कोसी क्षेत्र ईंट उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा जूट, साबुन, बिस्किट, चॉकलेट और प्रिंटिंग उद्योग स्थानीय अर्थव्यवस्था को सहारा देते हैं। कृषि और लघु उद्योगों के साथ ही यहां की युवा पीढ़ी कॉर्पोरेट नौकरियों और उद्यमिता की ओर भी तेजी से बढ़ रही है।
राजनीतिक समीकरण की बात करें तो भाजपा अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेगी, जबकि राजद जनता के बीच अपने सामाजिक आधार को और मजबूत करने की रणनीति पर काम कर रही है। जदयू का प्रभाव यहां लोकसभा स्तर पर जरूर है, लेकिन विधानसभा में उसका जनाधार सीमित माना जाता है। स्थानीय मुद्दों में बाढ़ नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और रोजगार के लिए लोगों की अपेक्षाएं हैं।
चुनावी इतिहास को देखें तो सहरसा की जनता समय-समय पर बदलाव करती रही है। 2025 में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजद एक बार फिर वापसी कर पाएगी या भाजपा अपने गढ़ को बनाए रखने में सफल होगी। फिलहाल, सहरसा विधानसभा की लड़ाई बिहार की राजनीति में एक बड़ा संदेश देने वाली साबित हो सकती है।