सोमालीलैंड का मुद्दा: क्या यह वैश्विक राजनीति को प्रभावित कर रहा है?
सारांश
Key Takeaways
- सोमालीलैंड अफ्रीका का एक विवादित क्षेत्र है।
- इजरायल का समर्थन इसे वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए महत्वपूर्ण है।
- सोमालीलैंड ने स्वतंत्र प्रशासन विकसित कर लिया है।
- इस क्षेत्र का भू-राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है।
- भारत का रुख सोमालिया के पक्ष में है।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सोमालीलैंड, जो कि अफ्रीका के हॉर्न ऑफ अफ्रीका क्षेत्र में स्थित है, यह लंबे समय से खुद को एक स्वतंत्र देश मानता आया है। हालाँकि, इसके अलावा, इजरायल को छोड़कर दुनिया के अन्य देशों ने इसे एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं दी है। सोमालीलैंड का एक लंबा इतिहास है, और यह पहली बार नहीं है कि इसका मुद्दा चर्चा में आया और वैश्विक राजनीति में हलचल पैदा की।
सोमालीलैंड पहले ब्रिटिश सोमालीलैंड के रूप में जाना जाता था, जो 1960 में आजाद हुआ। इसके बाद यह इतालवी सोमालीलैंड के साथ मिलकर सोमालिया बना। लेकिन 1991 में सोमालिया में गृहयुद्ध छिड़ गया, जिसके कारण सोमालीलैंड ने अपना अस्तित्व पाया। सोमालिया आज भी इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
सोमालीलैंड की इच्छा है कि दुनिया उसे एक स्वतंत्र देश के रूप में स्वीकार करे। कुछ देश इसके बारे में विचार कर रहे हैं, जिससे भू-राजनीतिक बहस तेज हो गई है। यह क्षेत्र रेड सी (लाल सागर) और अदन की खाड़ी के निकट स्थित है, जो वैश्विक व्यापार और सैन्य रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अमेरिका और इजरायल जैसे देश इसमें गहरी रुचि रखते हैं। वहीं, कुछ मुस्लिम देश इसे अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देने के पक्ष में हैं।
सोमालीलैंड ने पिछले तीन दशकों में अपना अलग प्रशासन, संसद, संविधान, चुनावी व्यवस्था, मुद्रा और सुरक्षा तंत्र विकसित कर लिया है। यहां की स्थिति सोमालिया की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण है। सोमालिया में अल-शबाब जैसे आतंकवादी संगठनों की हिंसा ने स्थिति को अराजक बना दिया है। इस कारण सोमालीलैंड खुद को डी-फैक्टो स्टेट मानता है।
कई देश, जिसमें भारत भी शामिल है, सोमालिया की संप्रभुता और एकता का समर्थन करते हैं और सोमालीलैंड को अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देते। भारत अफ्रीकी संघ की नीति के अनुसार संतुलित रुख बनाए रखता है।
सोमालीलैंड को एक देश के रूप में मान्यता देने के पीछे इजरायल की अपनी रणनीति है। इजरायल लाल सागर और अदन की खाड़ी के निकट सोमालीलैंड का समर्थन कर हूती विद्रोहियों की गतिविधियों पर नजर रखना चाहता है। इजरायल लंबे समय से मध्य पूर्व और अफ्रीकी देशों के साथ अपने संबंध सुधारने का प्रयास कर रहा है। हालाँकि, गाजा में युद्ध ने इसे चुनौती दी है। सोमालीलैंड को मान्यता देने के बाद इजरायल अमेरिका के समर्थन की प्रतीक्षा कर रहा है।
इजरायल लाल सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाना चाहता है, और इसके लिए सोमालीलैंड एक महत्वपूर्ण सहयोगी हो सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इजरायल का सोमालीलैंड को मान्यता देना लाल सागर के भू-राजनीति को बदल सकता है। सोमालीलैंड के माध्यम से इजरायल को बेरबेरा पोर्ट तक सीधी पहुँच प्राप्त हो सकती है। इससे लाल सागर में हूतियों के खतरे को कम करने और सुरक्षा को बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
सोमालीलैंड का नियंत्रण सोमालिया के उत्तर-पश्चिमी हिस्से पर है। इसकी सीमा उत्तर-पश्चिम में जिबूती और पश्चिम और दक्षिण में इथियोपिया से लगती है। यह क्षेत्र यमन के सामने लाल सागर के तट पर बसा हुआ है और इजरायल के लिए विशेष महत्व रखता है।
अमेरिका का समर्थन किसी भी कदम के लिए आवश्यक है, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मंजूरी से संबंधित हो। इस बीच, इजरायल और सोमालीलैंड ने घोषणा की है कि उनके रिश्ते अब्राहम समझौते की भावना के अनुसार विकसित हो रहे हैं। इजरायल के अलावा, सोमालीलैंड का केवल ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध है।
यह ध्यान देने योग्य है कि ताइवान को भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता नहीं मिली है। हालाँकि, सोमालीलैंड के संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी मजबूत संबंध हैं। यूएई, बेरबेरा पोर्ट में एक सैन्य बेस संचालित करता है, जिसमें एक नेवल पोर्ट और फाइटर जेट और परिवहन विमानों के लिए एक एयरस्ट्रिप शामिल है।
रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों का मानना है कि यह बेस यमन में सना के खिलाफ यूएई के नेतृत्व में चलाए जा रहे अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस साल की शुरुआत में, इथियोपिया ने लाल सागर तक पहुँच पाने के लिए एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पड़ोसी देशों के दबाव में इसे रोक दिया गया था।