क्या जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली?

सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा की याचिका को खारिज किया।
- कोर्ट ने जांच समिति की रिपोर्ट को मान्यता दी।
- वीडियो अपलोड करने का निर्णय सही नहीं था, लेकिन कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी गई।
- यह मामला न्यायपालिका में विवाद को जन्म देता है।
नई दिल्ली, 7 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा को एक बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने उनकी याचिका को सुनवाई योग्य नहीं मानते हुए खारिज कर दिया।
जस्टिस वर्मा ने अपने आवास से मिले जले हुए कैश के मामले में गठित जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पद से हटाने की सिफारिश को भी चुनौती दी थी।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता ने स्पष्ट किया कि अदालत ने यह माना है कि याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा कि चीफ जस्टिस और जांच कमेटी ने प्रक्रिया के सभी पहलुओं का पूरी ईमानदारी से पालन किया था।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि वीडियो अपलोड करना सही निर्णय नहीं था, लेकिन इसे कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी गई। कोर्ट ने कहा कि अब इस पर विचार नहीं किया जा सकता।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में नकदी बरामदगी की जांच और मई में जस्टिस वर्मा के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब 14 मार्च को जस्टिस वर्मा के नई दिल्ली स्थित आवास के बाहरी हिस्से में जले हुए नोट मिले, जिससे न्यायिक हलकों में हड़कंप मच गया। इसके बाद उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से इलाहाबाद हाई कोर्ट भेजा गया और आरोपों की जांच के लिए एक आंतरिक समिति गठित की गई।