क्या मुंबई के बाद हैदराबाद में तालिबान प्रतिनिधि ने वाणिज्य दूतावास का कार्यभार संभाल लिया?

सारांश
Key Takeaways
- तालिबान ने हैदराबाद में वाणिज्य दूतावास का कार्यभार संभाला।
- यह भारत में तालिबान के राजनयिक संबंधों को बढ़ाने का संकेत है।
- अफगानिस्तान में प्रतिनिधियों के लगातार नियुक्ति से काबुल की गंभीरता प्रकट होती है।
- काबुल से उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली आ सकता है।
- भारत और तालिबान के बीच व्यापार बढ़ाने पर चर्चा हो रही है।
नई दिल्ली, 6 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। मुंबई के बाद हैदराबाद में भी अफगान तालिबान के प्रतिनिधि ने वाणिज्य दूतावास से जुड़े कार्यों की जिम्मेदारी ले ली है। इससे यह स्पष्ट होता है कि तालिबान शासन भारत में अपने राजनयिक क्षेत्र को बढ़ाने के लिए गंभीर है।
बुधवार को राष्ट्र प्रेस को एक सूत्र ने बताया कि तालिबान शासन के नए प्रतिनिधि एम. रहमान इस वर्ष जून से अफगानिस्तान के हैदराबाद वाणिज्य दूतावास का नेतृत्व कर रहे हैं।
इससे पहले, पिछले साल इकरामुद्दीन कामिल ने अफगानिस्तान के मुंबई स्थित वाणिज्य दूतावास का कार्यभार संभाला था। वहीं, नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास की जिम्मेदारी सईद मोहम्मद इब्राहिम खिल के पास है, जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार ने नियुक्त किया था।
आधिकारिक तौर पर, सईद मोहम्मद इब्राहिम खिल अभी भी हैदराबाद मिशन के प्रभारी हैं, लेकिन मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार, जून से वाणिज्य दूतावास संबंधी कार्यों की कमान तालिबान के नए प्रतिनिधि ने संभाल ली है।
मुंबई और हैदराबाद में तालिबान के प्रतिनिधियों की नियुक्तियां यह संकेत देती हैं कि काबुल भारत के साथ सौहार्दपूर्ण राजनयिक संबंध बनाए रखने के लिए इच्छुक है।
तालिबान के सत्ता में आने के बाद कुछ अफगान राजनयिक भारत छोड़कर अन्य देशों में चले गए, जबकि जो भारत में रहे, उन्होंने युद्धग्रस्त देश के राजनयिक मिशनों को बनाए रखने की जिम्मेदारी ली।
पिछले महीने, रूस पहला ऐसा देश बना जिसने आधिकारिक रूप से अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दी। हालाँकि, महिलाओं के प्रति तालिबान के रवैये के कारण उसे वैश्विक मानवाधिकार संगठनों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। यही एक प्रमुख कारण है कि तालिबान शासन को वैश्विक मान्यता में बाधाएँ आ रही हैं।
एक अन्य सूत्र ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि नई दिल्ली द्वारा अफगान नागरिकों को वीजा देना पुनः शुरू करने के बाद, काबुल से एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल अगले महीने नई दिल्ली आ सकता है।
एक अधिकारी ने कहा, "यदि यह प्रतिनिधिमंडल आता है और सब कुछ सुचारू रूप से चलता है, तो यह काबुल के साथ राजनयिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। सच्चाई यह है कि तालिबान नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास का नियंत्रण अपने हाथ में लेना चाहता है, जबकि वर्तमान में वहां की कमान पूर्व शासन के प्रतिनिधि के पास है। ऐसा लगता है कि साल के अंत तक तालिबान की ओर से नियुक्त अधिकारी नई दिल्ली स्थित दूतावास की जिम्मेदारी संभाल सकते हैं। यह भारत-तालिबान संबंधों की एक नई शुरुआत होगी।"
गौरतलब है कि हाल ही में नई दिल्ली और काबुल के बीच उच्च-स्तरीय बातचीत हुई है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से बात की और 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा करने के लिए उनकी सराहना की। इसके अलावा, जनवरी में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी यूएई यात्रा के दौरान मुत्ताकी से मुलाकात की, जहां दोनों पक्षों ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के जरिए व्यापार को बढ़ावा देने पर सहमति जताई।