क्या तारापुर में जदयू का 'सितारा' 2025 में भी चमकता रहेगा?

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क्या तारापुर में जदयू का 'सितारा' 2025 में भी चमकता रहेगा?

सारांश

बिहार के तारापुर में जदयू का 15 वर्षों से लगातार शासन है। यहां कुशवाहा समुदाय का प्रभुत्व है। इस क्षेत्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान भी अद्वितीय है। क्या यह स्थिति आगामी चुनावों में भी बनी रहेगी? आइए जानते हैं तारापुर के राजनीतिक इतिहास और उसकी सांस्कृतिक धरोहर के बारे में।

Key Takeaways

  • तारापुर का इतिहास और संस्कृति अद्वितीय है।
  • कुशवाहा समुदाय का महत्वपूर्ण प्रभाव है।
  • जदयू का शासन पिछले 15 वर्षों से जारी है।
  • तारापुर में धार्मिक स्थल महत्वपूर्ण हैं।
  • राजनीतिक इतिहास की गहन समझ आवश्यक है।

पटना, ११ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के मुंगेर जिले का एक प्रमुख अनुमंडल स्तरीय कस्बा तारापुर इतिहास, संस्कृति, आस्था और राजनीति के कई रंगों को समेटे हुए है। तारापुर विधानसभा क्षेत्र जमुई लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।

तारापुर विधानसभा क्षेत्र में असरगंज, टेटिहा बम्बर, संग्रामपुर और खड़गपुर ब्लॉक की आठ ग्राम पंचायतें शामिल हैं। १९५१ में स्थापित इस क्षेत्र ने १९ बार विधायक चुने हैं, जिनमें दो उपचुनाव शामिल हैं।

इस क्षेत्र की राजनीतिक विशेषता यहां की ओबीसी आबादी, खासकर कुशवाहा समुदाय का प्रभाव है। यहां से चुने गए अधिकांश विधायक इसी जाति से रहे हैं, चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हों।

कांग्रेस ने पांच, जदयू ने छह (दो बार समता पार्टी के रूप में) और आरजेडी ने तीन बार जीत हासिल की। अन्य दलों जैसे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, शोषित दल, जनता पार्टी, सीपीआई और एक निर्दलीय ने भी एक-एक बार जीत दर्ज की।

२०२१ के उपचुनाव समेत दो इलेक्शन में जदयू और राजद के बीच जीत का अंतर करीब २ से ४ प्रतिशत रहा है। इस सीट पर २०१० के बाद से जदयू का कब्जा रहा है।

तारापुर की पहचान दो महत्वपूर्ण, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से जुड़ी है। पहली घटना १५ फरवरी १९३२ की है, जब झंडा सत्याग्रह के दौरान लगभग ४,००० स्वतंत्रता सेनानी स्थानीय थाने पर इकट्ठा हुए थे। इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने गोलीबारी की, जिसमें ३४ लोग शहीद हो गए। इसे जलियांवाला बाग के बाद दूसरा सबसे बड़ा ब्रिटिश नरसंहार माना जाता है, फिर भी यह इतिहास के पन्नों में उपेक्षित रहा।

२०२२ में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस दिन को 'शहीद दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की, जिससे यह बलिदान राष्ट्रीय पटल पर सामने आया।

दूसरी बड़ी घटना १९९५ के विधानसभा चुनाव के दौरान हुई, जब कांग्रेस प्रत्याशी सचिदानंद सिंह और उनके समर्थकों पर ग्रेनेड से हमला किया गया। घायल सचिदानंद सिंह को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां एक दूसरे हमले में उनकी मृत्यु हो गई। इस हिंसा में कुल नौ लोगों की जान गई। ३३ अभियुक्तों में शामिल समता पार्टी नेता शकुनि चौधरी ने इस सीट से चुनाव भी जीता।

तारापुर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत समृद्ध है। श्रावण मास के दौरान सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम तक कांवरियों का जत्था १०० किलोमीटर पैदल यात्रा करता है, जिसका प्रमुख रास्ता तारापुर से होकर गुजरता है। इस दौरान तारापुर क्षेत्र में श्रावणी मेला जैसा वातावरण बन जाता है। तेलडीहा भगवती मंदिर कांवड़िया परिपथ का एक प्रमुख पड़ाव है, जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

तारापुर विधानसभा क्षेत्र में उल्टा स्थान महादेव मंदिर बेहद प्रसिद्ध है। मंदिर में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लगी रहती हैं। इस प्राचीन शिव मंदिर की स्थापना ७५० ईस्वी में पाल वंश के राजा ने की थी। यहां भगवान शिव की प्रतिमा पूरब और माता पार्वती की प्रतिमा पश्चिम की ओर स्थापित है, जो इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। मंदिर में स्थापित पंचमुखी शिवलिंग और ९० दिनों तक जलभराव की रहस्यमयी घटना इसे और भी खास बनाती है।

तारापुर के रणगांव में रत्नेश्वरनाथ महादेव मंदिर स्थित है। इसे लोग 'छोटा देवघर' भी कहते हैं। मान्यता है कि यह मंदिर देवघर से भी पुराना है और यहां के पत्थरों में बाबाधाम से समानता पाई जाती है।

Point of View

ताकि हम समझ सकें कि कैसे स्थानीय राजनीति राष्ट्रीय परिदृश्य को प्रभावित कर सकती है।
NationPress
11/10/2025

Frequently Asked Questions

तारापुर विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
तारापुर विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख विशेषताएं यहां की ओबीसी आबादी और खासकर कुशवाहा समुदाय का प्रभाव हैं।
तारापुर की ऐतिहासिक घटनाएं क्या हैं?
तारापुर की ऐतिहासिक घटनाओं में 1932 का झंडा सत्याग्रह और 1995 का ग्रेनेड हमला शामिल हैं।
तारापुर में प्रमुख धार्मिक स्थल कौन से हैं?
तारापुर में उल्टा स्थान महादेव मंदिर और रत्नेश्वरनाथ महादेव मंदिर जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
तारापुर का राजनीतिक इतिहास क्या है?
तारापुर का राजनीतिक इतिहास जदयू, कांग्रेस और आरजेडी के बीच प्रतिस्पर्धा से भरा है।
क्या तारापुर में जदयू का प्रभुत्व जारी रहेगा?
यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 के चुनाव में जदयू का प्रभुत्व बना रहेगा या नहीं।