क्या यूपी डीजीपी राजीव कृष्ण ने कासगंज में परिक्षेत्र स्तरीय साइबर जागरूकता कार्यशाला का शुभारंभ किया?
सारांश
Key Takeaways
- साइबर अपराध की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- लालच और भय के कारण लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं।
- साइबर अपराध से बचने के लिए तत्काल 1930 डायल करें।
- मजबूत पासवर्ड का उपयोग आवश्यक है।
- बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करें।
लखनऊ, 20 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कासगंज जिले में आयोजित परिक्षेत्र स्तरीय साइबर जागरूकता कार्यशाला का सफल शुभारंभ किया।
डीजीपी राजीव कृष्ण ने कार्यक्रम के उद्घाटन के दौरान कहा कि पिछले कुछ वर्षों में हमारी जीवनशैली में बुनियादी बदलाव आया है। आज डिजिटल भुगतान, सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हर घर की आवश्यकता बन गए हैं। भारत आज प्रति व्यक्ति डिजिटल वित्तीय लेन-देन में विश्व में पहले स्थान पर है। कोविड-19 के बाद ई-कॉमर्स के क्षेत्र में लगभग 60 से 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में डेटा सबसे सस्ता है। साथ ही, सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं की सक्रियता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान समय में अधिकांश लोग सीधे इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। यह हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके साथ ही इसके दुरुपयोग की घटनाएं भी चिंताजनक हो रही हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हम इंटरनेट को केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें। यदि हम सजग और सतर्क रहें और नैतिकता का ध्यान रखें, तो इंटरनेट एक सकारात्मक बदलाव का माध्यम बन सकता है। साइबर अपराध का समाज पर विभिन्न प्रकार से प्रभाव पड़ रहा है। शायद ही कोई वर्ग साइबर क्राइम से अप्रभावित रहा हो। हमारे स्कूली बच्चे साइबर बुलिंग का शिकार होते हैं, जबकि महिलाएं और बालिकाएं अन्य महिला-केंद्रित साइबर अपराधों का शिकार होती हैं।
डीजीपी ने कहा कि डिजिटल अरेस्ट एक उभरता हुआ साइबर अपराध है, जिससे कई सभ्रांत नागरिक और पेंशनर्स शिकार हो चुके हैं और अपनी जीवनभर की कमाई खो चुके हैं। लोग आमतौर पर तीन कारणों से साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। पहला—लालच: लगभग 70 प्रतिशत साइबर वित्तीय अपराध लालच के कारण होते हैं। लोग अक्सर पैसे जल्दी कमाने या दोगुना करने के लालच में फंस जाते हैं।
दूसरा कारण भय है, जो सबसे खतरनाक मनोवैज्ञानिक अपराध है। साइबर अपराधी खुद को सीबीआई, पुलिस, या किसी सरकारी एजेंसी का अधिकारी बताकर लोगों को मानसिक दबाव में डालते हैं। वे ड्रग्स के मिलने, गंभीर शिकायतें दर्ज होने, या कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर नागरिकों को भ्रमित करते हैं और इसी डर का फायदा उठाकर ठगी करते हैं।
तीसरा कारण लापरवाही है: ओटीपी साझा करना, व्यक्तिगत जानकारी देना, और फर्जी लिंक पर क्लिक करना। ये पुरानी समस्याएं हैं, लेकिन एक नया और खतरनाक तरीका एपीके फाइल है। अपराधी शादी के निमंत्रण, विशेष सूचना, या बैंक अलर्ट का संदेश भेजकर एपीके लिंक पर क्लिक करवाते हैं। जब आप क्लिक करते हैं, तो आपका फोन हैक हो जाता है और आपके सभी पासवर्ड, बैंक विवरण, और यूपीआई डेटा चोरी हो जाता है। कभी भी किसी अनजान एपीके फाइल को न खोलें।
डीजीपी ने नागरिकों के लिए तीन महत्वपूर्ण उपाय बताए। साइबर अपराध से बचने के लिए नागरिकों को तत्काल 1930 डायल करना चाहिए—यह देश की सबसे शक्तिशाली साइबर हेल्पलाइन है, जिसमें 654 बैंक और एनबीएफसी जुड़े हैं। जब आप कॉल करते हैं, आपकी ट्रांजेक्शन आईडी ली जाती है और जिस अकाउंट में पैसा गया है, वह तुरंत फ्रीज कर दिया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि समय की पाबंदी है। यदि 30 मिनट से अधिक समय हो गया, तो पैसा दूसरी-तीसरी लेयर में चला जाता है और रिकवरी कठिन हो जाती है।
साइबर अपराध होने पर तुरंत, सही और सटीक सूचना देना आवश्यक है। एक भी अंक गलत हुआ तो पैसा गलत खाते में फ्रीज हो सकता है। बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग के दुष्प्रभावों के प्रति सतर्क रहना आवश्यक है। बच्चों और युवाओं को समझना होगा कि साइबर गेमिंग में हमेशा गेम बनाने वाला जीतता है, न कि खेलने वाला। आज के युग में सोशल मीडिया युवाओं को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। हमें और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।
डीजीपी ने पुलिस अधिकारियों को भी एक संदेश दिया। उन्होंने कहा कि थाना प्रभारियों को यह सोच छोड़नी होगी कि साइबर अपराध की जांच हम नहीं कर सकते। साइबर अपराध की जांच एसओपी आधारित और व्यवस्थित होती है। यदि कोई अधिकारी इसे सीखने की इच्छा रखता है, तो वह इसके छह-सात चरणों को समझकर पाएगा कि यह सामान्य आपराधिक जांच से भी अधिक सरल और त्वरित है। साइबर अपराध का दायरा और दुष्प्रभाव प्रतिदिन बढ़ रहा है, इसलिए पुलिस कर्मियों का आत्मविश्वास और कौशल बढ़ाना अति आवश्यक है।
उन्होंने बताया कि साइबर क्राइम से बचने के लिए मजबूत पासवर्ड और अपडेटेड सॉफ्टवेयर का उपयोग करें और हमेशा सतर्क रहें। उत्तर प्रदेश पुलिस नागरिक-केंद्रित, त्वरित और पारदर्शी साइबर कानून प्रवर्तन के साथ-साथ राज्य को साइबर अपराध-मुक्त बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। यह तभी संभव है जब प्रत्येक नागरिक सतर्क, सजग और सहयोगी बने। सुरक्षित डिजिटल उत्तर प्रदेश तभी बनेगा जब जनता और पुलिस एक साथ हों। अंत में उन्होंने कहा कि साइबर क्राइम जितनी तेजी से बढ़ सकता है, उतनी ही तेजी से नियंत्रण में भी आ सकता है, बशर्ते हम सभी जागरूक रहें।