क्या यूपी में ‘आनन्दम’ से स्कूली शिक्षा का स्वरूप बदलेगा, बच्चे पहली बार केस स्टडी करेंगे?
सारांश
Key Takeaways
- बच्चों को अनुभवात्मक शिक्षा मिलेगी।
- स्थानीय उद्योगों से परिचय होगा।
- बैगलेस दिवसों की व्यवस्था होगी।
- केस स्टडी का अनुभव मिलेगा।
- समुदाय की सहभागिता बढ़ेगी।
लखनऊ, 18 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तर प्रदेश में स्कूली शिक्षा का नया रूप सामने आ रहा है। बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह की इस नई पहल के तहत बच्चों को स्थानीय उद्योगों से भी परिचित कराया जाएगा। इसके तहत कक्षा 6, 7 और 8 के छात्रों के लिए हर शैक्षिक सत्र में 10 बैगलेस दिवस अनिवार्य किए गए हैं। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा तैयार की गई ‘आनन्दम मार्गदर्शिका’ के आधार पर सभी 75 जिलों के बीएसए को विस्तृत निर्देश जारी किए गए हैं।
इसका प्रमुख उद्देश्य बच्चों को आनंदपूर्ण, कौशल आधारित और अनुभवात्मक शिक्षा से जोड़ना है। इन बैगलेस दिनों में छात्र बिना बैग के विद्यालय आएंगे और शैक्षिक भ्रमण, प्रयोग, कला-शिल्प, खेल, वैज्ञानिक गतिविधियों, स्थानीय व्यवसायों का अनुभव, प्राकृतिक अन्वेषण और सामुदायिक सहभागिता जैसी गतिविधियों में भाग लेंगे। खास बात यह है कि बच्चे पहली बार केस स्टडी भी करेंगे, जिससे वे पाठ्यपुस्तकों से बाहर निकलकर वास्तविक जीवन की परिस्थितियों को समझ सकेंगे। कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य बच्चों में अवलोकन क्षमता, विश्लेषण, तर्क, रचनात्मकता, कौशल विकास, श्रम की गरिमा, आत्मनिर्भरता और स्थानीय संस्कृति से जुड़ाव को बढ़ावा देना है।
बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह का कहना है कि यह कार्यक्रम बच्चों को भविष्य में व्यावसायिक रूप से सक्षम बनाने वाले कौशल से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
एससीईआरटी के निदेशक डॉ. गणेश कुमार का कहना है कि एससीईआरटी ने इस कार्यक्रम के लिए विभिन्न गतिविधियों की एक सूची तैयार की है, जिन्हें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, स्थानीय उद्योग-व्यवसाय, तथा कला-संस्कृति-इतिहास श्रेणियों में बांटा गया है। प्रत्येक गतिविधि में आवश्यकतानुसार कारीगर, शिल्पकार, विशेषज्ञ, अभिभावक और समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए भी एक समावेशी योजना बनाई गई है।
महानिदेशक स्कूल शिक्षा मोनिका रानी ने इसे नवाचार की नई राह बताते हुए कहा कि इससे बच्चों में रचनात्मकता, आत्मविश्वास और राष्ट्र की संस्कृति से गहरा जुड़ाव विकसित होगा।
बच्चे अवलोकन, प्रयोग, विश्लेषण, वर्गीकरण, तर्क और निष्कर्ष निकालने जैसे कौशल सीखेंगे। स्थानीय कलाकारों, कारीगरों और उद्योगों से सीधा संवाद होगा। स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को मजबूती मिलेगी। कौशल आधारित गतिविधियों से बच्चे श्रम का महत्व समझेंगे और भविष्य के व्यवसायों का व्यावहारिक अनुभव पाएंगे। स्मारकों, ऐतिहासिक स्थलों, संग्रहालयों और स्थानीय विरासत के बारे में गहरा ज्ञान बढ़ेगा। प्रत्येक गतिविधि में समुदाय, अभिभावकों और विशेषज्ञों की सक्रिय भागीदारी होगी, जिससे बच्चों को वास्तविक जीवन से जुड़ी जानकारी मिलेगी।