क्या यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025 में छत्तीसगढ़ के बस्तर की डोकरा आर्ट आकर्षण का केंद्र बनी?

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क्या यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025 में छत्तीसगढ़ के बस्तर की डोकरा आर्ट आकर्षण का केंद्र बनी?

सारांश

नोएडा में आयोजित 'यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025' ने स्थानीय कारीगरों और शिल्पियों की कला को प्रदर्शित किया है। छत्तीसगढ़ के बस्तर से आई डोकरा आर्ट इस मेले की खासियत है, जो भारतीय संस्कृति और परंपरा को दर्शाती है।

Key Takeaways

  • स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने का मंच
  • छत्तीसगढ़ की डोकरा आर्ट का अद्भुत प्रदर्शन
  • भारतीय संस्कृति और परंपरा का संरक्षण
  • स्थानीय कारीगरों को समर्थन
  • मेला आने वाले दिनों में और भीड़ आकर्षित करेगा

नोएडा, 11 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने और स्थानीय कारीगरों को एक मंच प्रदान करने के लिए नोएडा हाट, सेक्टर-33ए में 10 दिवसीय "यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025" का भव्य शुभारंभ हुआ है। यह मेला उत्तर प्रदेश सरकार की 'वोकल फॉर लोकल' और 'आत्मनिर्भर भारत' की नीतियों को मजबूती से आगे बढ़ाते हुए, प्रदेशभर से आए शिल्पियों, कारीगरों और लघु उद्यमियों की कला और परिश्रम को जनता के सामने प्रस्तुत कर रहा है।

यह स्वदेशी मेला केवल उत्पादों की प्रदर्शनी नहीं, बल्कि भारतीय परंपरा, संस्कृति और कौशल का जीवंत रूप है। यहां लगे स्टॉल्स पर हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, जूट उत्पाद, प्राकृतिक खाद्य सामग्री, मिट्टी और धातु शिल्प जैसे अनेकों उत्पाद लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। इसी क्रम में छत्तीसगढ़ के बस्तर से लाई गई डोकरा आर्ट मेले का मुख्य आकर्षण बनी हुई है।

सोनू नामक कलाकार ने बताया कि डोकरा आर्ट को देशभर की स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में भी शामिल किया गया है, ताकि नई पीढ़ी इस प्राचीन धरोहर से परिचित हो सके। उन्होंने बताया कि एक अकेले पीस को बनाने में 2 से 4 महीने का समय लग जाता है और यह पूरी तरह से हैंडमेड तकनीक से तैयार होता है। इसकी कास्टिंग शहद के छत्ते से निकलने वाली मोम से की जाती है और पूरा ढांचा ब्रास के तारों से निर्मित होता है।

डोकरा कला की सबसे रोचक प्रदर्शनी 'झिटकू' और 'मिटकू' नामक प्रतीकात्मक मूर्तियों की है। इन्हें स्थानीय संस्कृति में सौभाग्य और धन लाभ का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इन्हें घर में रखने से समृद्धि आती है और वैवाहिक जीवन में प्रेम बना रहता है।

सोनू ने बताया कि यह कला लगभग 4000 वर्ष पुरानी मानी जाती है और यह केवल बस्तर क्षेत्र में ही विशिष्ट रूप से प्रचलित है। यही कारण है कि डोकरा आर्ट को राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिल रही है। मेले में आने वाले आगंतुक पारंपरिक कला से जुड़ाव महसूस कर रहे हैं और स्वदेशी उत्पादों की खरीदारी कर स्थानीय कारीगरों को समर्थन दे रहे हैं। यह आयोजन न केवल व्यापारिक मंच है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का भी एक प्रभावी माध्यम बन चुका है।

स्वदेशी मेला 2025 आने वाले दिनों में और अधिक भीड़ आकर्षित करेगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। यह आयोजन साबित कर रहा है कि अगर मंच मिले तो भारतीय कारीगरों की कला विश्व भर में अपनी अलग पहचान बना सकती है।

Point of View

यह कहना आवश्यक है कि ऐसे आयोजन न केवल व्यापारिक अवसर प्रदान करते हैं बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करने का कार्य करते हैं। 'यूपी ट्रेड शो–स्वदेशी मेला 2025' भारत की समृद्ध कला और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने का एक उत्तम माध्यम है।
NationPress
27/11/2025

Frequently Asked Questions

डोकरा आर्ट क्या है?
डोकरा आर्ट एक प्राचीन धातु शिल्प कला है जो विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में प्रचलित है।
यह मेला कब शुरू हुआ?
यह मेला 10 अक्टूबर 2025 को नोएडा में शुरू हुआ।
डोकरा आर्ट को बनाने में कितना समय लगता है?
एक डोकरा पीस को बनाने में 2 से 4 महीने का समय लग सकता है।
क्या डोकरा आर्ट को स्कूलों में पढ़ाया जाता है?
जी हां, डोकरा आर्ट को देशभर की स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में शामिल किया गया है।
इस मेले में और क्या खास है?
मेले में हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, जूट उत्पाद और अन्य स्वदेशी उत्पादों की प्रदर्शनी की जा रही है।
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