क्या उत्तराखंड से लेकर मध्यप्रदेश तक ये देवी मंदिर नेत्र रोग से मुक्ति दिलाते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- नैना देवी मंदिर नेत्र रोगों के लिए विशेष मान्यता रखता है।
- माता निरार का प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है।
- माता फूलमती के मंदिर में चांदी की आंख अर्पित करने की परंपरा है।
- कुष्मांडा देवी का मंदिर नेत्र रोगों के लिए प्रसिद्ध है।
- सूलाबावजी मंदिर का पानी आंखों की समस्याओं में राहत देता है।
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ अनेकों प्राचीन और शक्तिपीठ मंदिरों की पूजा की जाती है, लेकिन कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहां भक्त अपने रोगों से मुक्ति पाने के लिए मां के चरणों में आते हैं। भक्तों का मानना है कि मां की कृपा से बड़ी से बड़ी बाधा और रोग का नाश हो सकता है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और नैनीताल में ऐसे कई मंदिर हैं जहां भक्त अपने नेत्र रोगों से छुटकारा पाने के लिए मां के धाम पहुंचते हैं।
उत्तराखंड का नैना देवी मंदिर विशेष रूप से भक्तों के बीच नेत्र रोगों के लिए प्रसिद्ध है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां आकर मां की कृपा से आंखों के रोगों से मुक्ति मिलती है। नैना देवी एक शक्तिपीठ है, जहां मां सती के दोनों नयन गिरे थे। इस मंदिर का पुनर्निर्माण भूस्खलन के बाद किया गया था।
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले के पहाड़ों में माता निरार वाली विराजमान हैं। यह एक प्राचीन मंदिर है, जो घने जंगलों के बीच स्थित है। यहां भक्त दूर-दूर से अपनी आंखों के रोगों के लिए आते हैं और ठीक होकर लौटते हैं। मान्यता है कि यहां अर्जी लगाने से मां आंखों के रोगों को दूर करती हैं।
उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के मकरंद नगर क्षेत्र में स्थित माता फूलमती का मंदिर विशेष है। यहां आंखों के रोग से मुक्ति पाने वाले भक्तों को माता रानी पर चांदी की आंख अर्पित करनी होती है। इस मंदिर में मां की प्रतिमा को जल से स्नान कराया जाता है, और यह जल नेत्र रोगी भक्त अपनी आंखों पर लगाते हैं।
कानपुर में मां कुष्मांडा देवी भी नेत्र रोगों को ठीक करने के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां मां पिंडी के रूप में विराजमान हैं, और जल भक्त अपनी आंखों पर लगाते हैं।
राजस्थान का सूलाबावजी मंदिर भी नेत्र रोगों की मुक्ति के लिए जाना जाता है। यह मंदिर मां भवानी का नहीं है, फिर भी इसकी प्रसिद्धि इतनी है कि दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं। कहा जाता है कि मंदिर का पानी पीने से या आंखों पर छिड़कने से भक्त को नेत्र रोगों में राहत मिलती है।