क्या मध्य पूर्व में तनाव का भारतीय कंपनियों पर सीमित असर होगा?

सारांश
Key Takeaways
- कम पूंजीगत व्यय और मजबूत बैलेंस शीट कंपनियों की सुरक्षा करेंगे।
- कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से महंगाई में इजाफा हो सकता है।
- मध्य पूर्व में तनाव की स्थिति पर निगरानी आवश्यक है।
- रिपोर्ट में बासमती चावल और अन्य क्षेत्रों पर असर का उल्लेख है।
- भारत की निर्यात क्षमता मांग जोखिम को कम करती है।
नई दिल्ली, 20 जून (राष्ट्र प्रेस)। मध्य पूर्व में तनाव का अधिकांश भारतीय कंपनियों पर प्रभाव निकट भविष्य में सीमित रहने की संभावना है, क्योंकि कम पूंजीगत व्यय और कंपनियों की बैलेंस शीट की मजबूती संभावित कमजोरियों से सुरक्षा प्रदान करेगी। शुक्रवार को जारी क्रिसिल की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि यह विवाद लंबे समय तक चलता है तो कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी और इससे महंगाई में इजाफा होगा।
रिपोर्ट में कहा गया, "अब तक मध्य पूर्व में जारी अनिश्चितताओं का भारतीय उद्योगों के वैश्विक व्यापार पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। हालांकि, यदि स्थिति बिगड़ती है, तो बासमती चावल जैसे कुछ क्षेत्रों पर इसका ज्यादा असर पड़ सकता है और इस पर निगरानी की आवश्यकता होगी। वहीं, उर्वरक और हीरे (कटे और पॉलिश किए दोनों) जैसे अन्य क्षेत्रों पर भी इसका कुछ असर पड़ सकता है।"
रिपोर्ट के अनुसार, मध्य पूर्व क्षेत्र में अनिश्चितताओं ने वैश्विक कच्चे तेल के बाजारों को प्रभावित किया है, पिछले एक सप्ताह में ब्रेंट क्रूड 73-76 डॉलर प्रति बैरल (बीबीएल) के बीच बना हुआ है। वहीं, अप्रैल-मई 2025 के दौरान ब्रेंट क्रूड की औसत कीमत 65 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर थी। यदि कच्चे तेल की कीमतें लंबे समय तक ऊंची बनी रहती हैं, तो इससे भारत की कंपनियों के मुनाफे पर प्रभाव पड़ सकता है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि लंबे समय तक अनिश्चितताओं के परिणामस्वरूप निर्यात/आयात आधारित क्षेत्रों के लिए हवाई/समुद्री माल ढुलाई लागत और बीमा प्रीमियम में वृद्धि हो सकती है।
इजरायल और ईरान के साथ भारत का सीधा व्यापार कुल व्यापार का 1 प्रतिशत से भी कम है। ईरान को भारत का मुख्य निर्यात बासमती चावल है, जबकि इजरायल के साथ व्यापार अधिक विविधतापूर्ण है, जिसमें उर्वरक, हीरे और बिजली के उपकरण शामिल हैं।
मध्य पूर्व, अमेरिका और यूरोप के अन्य देशों को निर्यात करने की भारत की क्षमता मांग जोखिम को कम करती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक संकट रहने से इन क्षेत्रों में निर्यात पक्ष से भुगतान में संभावित देरी हो सकती है, जिससे कार्यशील पूंजी चक्र लंबा हो सकता है।