क्या 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' और तुलसी का किरदार सिर्फ ट्रेंड नहीं, बल्कि परंपरा बन गया है?: स्मृति ईरानी

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क्या 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' और तुलसी का किरदार सिर्फ ट्रेंड नहीं, बल्कि परंपरा बन गया है?: स्मृति ईरानी

सारांश

स्मृति ईरानी की वापसी 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में तुलसी के रूप में एक नई कथा को जन्म देती है। यह शो केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि भारतीय परिवारों की परंपरा बन चुका है। जानिए इस शो की महत्वता और तुलसी के किरदार के पीछे की कहानी।

Key Takeaways

  • तुलसी का किरदार भारतीय परिवारों में गहरा जुड़ाव रखता है।
  • यह शो केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि एक सामाजिक परंपरा है।
  • स्मृति ईरानी की वापसी दर्शकों के लिए एक नया अनुभव लाएगी।

मुंबई, 8 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। अभिनेत्री और नेता स्मृति ईरानी एक बार फिर टीवी धारावाहिक ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ में तुलसी विरानी के रोल में लौट रही हैं। यह शो भारतीय टीवी पर लंबे समय तक छाया रहा। इस धारावाहिक के प्रभाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पॉप-कल्चर का हिस्सा बन गया था। लोग तुलसी जैसे पात्रों से गहरा जुड़ाव महसूस करते थे। यह शो और इसका किरदार केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि परिवारों की परंपरा बन गए थे।

स्मृति ईरानी ने बताया कि भले ही यह शो कई वर्ष पहले प्रसारित हुआ था, लेकिन आज भी लोग इसे याद करते हैं और पसंद करते हैं। यह धारावाहिक और तुलसी का किरदार लाखों भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान बना चुके हैं।

उन्होंने शो के बारे में कहा, "जब मैंने पहली बार तुलसी का किरदार निभाना शुरू किया, तो मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसकी कहानी इतना गहरा असर डालेगी। यह कहानी न केवल घरों में, बल्कि लाखों भारतीयों के दिलों में पहुंची। तुलसी केवल एक किरदार नहीं थी; वह एक बेटी, एक मां और एक दोस्त बन गई। कई लोग उसमें अपनी शक्ति, त्याग और विश्वास की झलक देख पाते थे।"

एक्ट्रेस ने आगे कहा कि साल 2000 के आसपास, जब सोशल मीडिया या हैशटैग जैसी चीजें नहीं थीं, तब भी ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ इतना प्रसिद्ध हुआ कि यह केवल एक ट्रेंड नहीं रहा, बल्कि परिवारों की परंपरा बन गया।

उन्होंने कहा, "इस शो ने सभी कामयाबी के रिकॉर्ड तोड़े, केवल आंकड़ों से नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं से। परिवार के सभी सदस्य अपना काम छोड़कर एक साथ बैठकर यह शो देखते थे। तुलसी के नाम पर घरों में बहस होती थी, हंसी होती थी, आंसू बहते थे। जब मैं टीवी से गई, तब भी तुलसी लोगों के दिलों में जीवित रही। लोग मुझे मेरे असली नाम ‘स्मृति’ से नहीं, बल्कि ‘तुलसी’ कहकर बुलाते रहे, क्योंकि यह किरदार केवल टीवी पर नहीं, बल्कि उनकी यादों और आदतों का हिस्सा बन गया। ऐसी पहचान स्क्रिप्ट से नहीं मिलती, बल्कि यह लोगों के प्यार की देन होती है, जिसे हाथ जोड़कर और दिल से आभार के साथ स्वीकार करना पड़ता है।"

स्मृति ईरानी ने आगे कहा, "अब वर्षों बाद, जीवन फिर से उसी मोड़ पर आ गया है।

लेकिन यह वापसी बीते समय को फिर से दोहराने के लिए नहीं, बल्कि उस भावना को पुनर्जीवित करने के लिए है, जो कभी खत्म नहीं हुई थी। अब तुलसी केवल एक किरदार बनकर नहीं लौट रही, बल्कि एक भावना, एक याद और एक संबंध बनकर वापस आ रही है, जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। आज के समय में, जहां कहानियाँ जल्दी शुरू होती हैं लेकिन उनका महत्व लोग जल्दी भुला देते हैं, इस शो की वापसी एक निमंत्रण है, कुछ पल रुकने का, पुरानी यादों को जीने का और फिर से कुछ महसूस करने का।"

Point of View

बल्कि एक सामाजिक पहचान बन गया है। यह शो परिवारों को एक साथ लाने का काम करता था, जो आज भी प्रासंगिक है।
NationPress
23/07/2025

Frequently Asked Questions

क्या 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' एक ट्रेंड है?
यह शो केवल एक ट्रेंड नहीं है, बल्कि यह भारतीय परिवारों की परंपरा बन चुका है।
स्मृति ईरानी का किरदार तुलसी क्यों महत्वपूर्ण है?
तुलसी का किरदार दर्शकों के लिए एक बेटी, मां और दोस्त का प्रतीक बन गया है।
क्या इस शो की वापसी से पुरानी यादें ताजा होंगी?
बिल्कुल, यह शो पुरानी यादों को जीने का एक नया अवसर देगा।