क्या अर्कमूल: औषधि जो कई समस्याओं को करती है दूर, कैंसर से लड़ने में भी कारगर है?

सारांश
Key Takeaways
- अर्कमूल बाहरी और आंतरिक रोगों में सहायक है।
- यह कैंसर से लड़ने में मदद कर सकता है।
- अर्कमूल के गुणों का उपयोग करने के लिए सावधानी बरतें।
- इसका दूध विषैला होता है, इसलिए इसे सुरक्षित तरीके से उपयोग करें।
- गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चे इसे न लें।
नई दिल्ली, 16 जून (राष्ट्र प्रेस)। भारत की मिट्टी सदियों से औषधियों का स्रोत रही है। एक साधारण लेकिन प्रभावशाली जड़ी-बूटी – अर्कमूल, जिसे आमतौर पर अकौआ, अकौड़ा या मदार भी कहा जाता है, इसके अद्भुत गुणों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। यह जड़ी-बूटी केवल बाहरी बीमारियों में ही नहीं, बल्कि आंतरिक विकारों, विषाक्तता, और मानसिक शुद्धि में भी उत्कृष्ट है।
अर्कमूल एक झाड़ीदार पौधा है, जिसका वैज्ञानिक नाम 'कैलोट्रोपिस गिगेंटिया' है और यह एपोसाइनेसी परिवार का हिस्सा है। इसकी ऊंचाई 3-5 फीट होती है और जब इसके तने या पत्ते को तोड़ा जाता है, तो सफेद दूध निकलता है, जो औषधीय गुणों से भरा होता है। चरक संहिता इसे पाचन और आंतरिक रोगों के लिए लाभकारी मानती है, जबकि सुश्रुत संहिता इसे मुख्यतः रोगों और घावों से छुटकारा दिलाने में सहायक मानती है। कुछ अनुसंधानों में यह पाया गया है कि कैलोट्रोपिस के तत्वों में एंटी-कैंसर गुण भी होते हैं। यह कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि को रोकने में सक्षम है।
सुश्रुत संहिता में अर्कमूल का उपयोग मुख्यतः घावों, अल्सर, सूजन, विषैले कीड़े के काटने और सर्प के प्रभाव को कम करने में किया जाता है। अर्क के दूध का इस्तेमाल बवासीर के उपचार में किया जाता है, जिससे सूजन कम होती है और दर्द में राहत मिलती है। अस्थमा या सांस लेने में कठिनाई होने पर मदार के फूलों का उपयोग सहायक माना जाता है।
सुश्रुत संहिता में इसे कैसे प्रयोग में लाएं, इस पर विस्तार से बताया गया है। चिकित्सा ग्रंथ के अनुसार, आक के फूलों को तोड़कर उन्हें धूप में अच्छी तरह सुखाकर चूर्ण बनाया जाता है। इस पाउडर के सेवन से फेफड़ों की बीमारियों, अस्थमा, और कमजोरी जैसी समस्याओं का समाधान होता है। अगर आप दांत के दर्द से परेशान हैं, तो इसके लिए अर्कमूल के दूध में कॉटन बॉल को डुबोकर मसूड़ों पर लगाने से आपको दर्द में राहत मिल सकती है।
दांत के दर्द के साथ-साथ त्वचा पर होने वाले छालों को दूर करने के लिए भी यह एक प्रभावी उपाय है। तांत्रिक और वैदिक परंपराओं में अर्क के पौधे को शिव का प्रतीक माना गया है। इसकी जड़ को सिद्ध करके ध्यान या जाप में प्रयोग किया जाता है। इसका दूध अत्यधिक विषैला होता है, इसलिए इसे आंखों, नाक, या खुले घाव पर न लगाएं और गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे, या दिल के मरीज इसे बिना वैद्य की सलाह के न लें।