क्या 'डायबेसिटी' 21वीं सदी की बीमारी है, जिससे नहीं संभले तो जीवन पर पड़ेगी भारी?

सारांश
Key Takeaways
- डायबेसिटी
- यह मोटापे और डायबिटीज का संयोजन है।
- समस्या को पहचानना और समय पर कदम उठाना आवश्यक है।
- व्यायाम और संतुलित आहार से बचाव संभव है।
- जागरूकता बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है।
नई दिल्ली, 27 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। आजकल स्वास्थ्य की दुनिया में एक नया शब्द चर्चा में है, जिसे डायबेसिटी कहा जाता है। इसे समझना कठिन नहीं है। यह एक ऐसा शब्द है जिसमें दो बड़ी समस्याएं समाहित हैं। जब इंसान का वजन बढ़ता है और साथ ही ब्लड शुगर भी नियंत्रण से बाहर हो जाता है, तो डॉक्टर इसे डायबेसिटी कहते हैं। यह केवल एक बीमारी नहीं, बल्कि एक उभरती हुई पब्लिक हेल्थ क्राइसिस है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 65 करोड़ लोग मोटापे से और 53 करोड़ लोग डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं। भारत इस संकट से अछूता नहीं है। 2023 की आईसीएमआर-इंडियाबी स्टडी बताती है कि देश में लगभग 10 करोड़ लोग डायबिटीज का शिकार हैं और 13 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक स्थिति में हैं। रिसर्च कहती है कि मोटे लोगों में टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा 80–90 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
इंसुलिन रेजिस्टेंस – मोटापा शरीर की कोशिकाओं को इंसुलिन के प्रति कम संवेदनशील बना देता है, जो कि टाइप-2 डायबिटीज की सबसे बड़ी जड़ है। विसरल फैट (पेट की चर्बी) – कमर और पेट पर जमा फैट शरीर में सूजन और हार्मोनल असंतुलन पैदा करता है। लाइफस्टाइल फैक्टर – कम नींद, तनाव, फास्ट फूड और शारीरिक निष्क्रियता इस समस्या को और बढ़ा देते हैं।
डायबेसिटी होने पर इंसान को केवल डायबिटीज और मोटापे की परेशानी नहीं होती है, बल्कि यह कई गंभीर बीमारियों की जड़ बन जाती है। हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है। हाई ब्लड प्रेशर, फैटी लिवर, किडनी की बीमारी और कुछ कैंसर भी हो सकते हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि डायबेसिटी से निपटना केवल दवाओं से संभव नहीं है। यह एक लाइफस्टाइल डिजीज है, जिसका समाधान भी लाइफस्टाइल में छिपा है। सलाह दी जाती है कि रोजाना कम से कम 30 मिनट तेज वॉक या कसरत करें। फाइबर, प्रोटीन और लो-जीआई (ग्लाइसेमिक इंडेक्स) वाले आहार का सेवन करें और नींद पूरी करें।