क्या आप ज्यादा सोचने, शक करने या काम टालने की आदत से परेशान हैं? जानें आयुर्वेद से इसका कारण क्या है?

सारांश
Key Takeaways
- वात-पित्त दोष अधिक सोचने का कारण हो सकता है।
- पित्त-कफ दोष कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- वात-कफ दोष आलस्य और ठहराव का कारण बन सकते हैं।
- नियमित योग और ध्यान से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है।
- आयुर्वेदिक उपचार से शरीर और मन का संतुलन बनाए रखा जा सकता है।
नई दिल्ली, 16 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। वर्तमान समय में अधिक सोचने, शक करने और काम टालने की आदतें आम हो गई हैं। कभी-कभी, हम अपने आप को बहुत परेशान महसूस करते हैं क्योंकि हमारा मन लगातार विचारों में डूबा रहता है या हम आवश्यक कार्यों को टालने लगते हैं। इसे केवल एक आदत मानना उचित नहीं है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार ये हमारी सेहत से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं।
चरक संहिता के अनुसार, हमारे शरीर में तीन विशेष दोष होते हैं: वात, पित्त और कफ, जो हमारे मन और व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं। जब ये दोष असंतुलित हो जाते हैं, तो हम अधिक सोचने, जल्दी गुस्सा होने और काम टालने जैसी आदतों का सामना करने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप न केवल हमारा मन बल्कि हमारा शरीर भी थक जाता है। यह समझना आवश्यक है कि हमारी सोच और व्यवहार हमारे शरीर के दोषों से कैसे जुड़े हैं और इनका संतुलन बनाए रखने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए। आज हम द्वंदज विकार पर चर्चा करेंगे, अर्थात् दो विपरीत दोषों के मिलन से उत्पन्न समस्याएं।
वात-पित्त दोष: जिन व्यक्तियों में वात और पित्त का दोष अधिक होता है, वे अधिक सोचते और चिंता करते हैं। उन्हें त्वरित परिणाम की आवश्यकता होती है, जिससे उनका मन बेचैन और शरीर थका हुआ रहता है।
पित्त-कफ दोष: पित्त और कफ दोष वाले लोग कार्य में तेज शुरुआत करते हैं, लेकिन बाद में काम टालने लगते हैं। इससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और वे जल्दी गुस्सा भी हो जाते हैं।
वात-कफ दोष: वात और कफ दोष वाले लोग अधिक सोचते हैं, लेकिन काम कम करते हैं। वे कठिन कार्यों से बचना पसंद करते हैं, जिससे उनमें आलस्य और ठहराव की स्थिति बन जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार, केवल दवा लेना ही पर्याप्त नहीं है। हमें अपने दोषों को समझकर अपनी सोच और व्यवहार में सुधार करना आवश्यक है। इससे हमारे मन और शरीर दोनों को आराम मिलता है।
इस समस्या का समाधान खोजने के लिए, सबसे पहले मन को शांत रखना आवश्यक है। साथ ही, अपने आप पर विश्वास करें और निरंतर मेहनत करें। सही दवा और सही सोच के साथ सही उपचार लेना भी महत्वपूर्ण है। जब हम अपने दोषों को समझकर अपनी आदतों को सुधारते हैं, तभी हम अधिक सोचने, शक करने और काम टालने जैसी आदतों से बाहर निकल सकते हैं।