क्या हर सात में से एक किशोर मानसिक विकार से जूझ रहा है? डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट
सारांश
Key Takeaways
- हर सात में से एक किशोर मानसिक विकार से प्रभावित है।
- डिप्रेशन और एंग्जाइटी सामान्य समस्याएं हैं।
- सोशल मीडिया का मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव है।
- सरकार और समाज को मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए।
- समुदाय की सहभागिता आवश्यक है।
नई दिल्ली, 5 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हाल ही में जयपुर से आई एक हृदय विदारक खबर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। 9 साल की एक बच्ची ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूद कर अपने जीवन को समाप्त कर लिया। इस कदम के पीछे की वजह को लेकर कई चर्चाएँ चल रही हैं, लेकिन इस खतरनाक कदम ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नई फैक्ट शीट की ओर ध्यान खींचा है, जो 1 सितंबर 2025 को जारी हुई।
डब्ल्यूएचओ की नई फैक्ट शीट “किशोरवय में मानसिक सेहत” के अनुसार, वैश्विक स्तर पर हर सात में से एक किशोर, यानी लगभग 16 करोड़ बच्चे, किसी न किसी मानसिक विकार का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 10 से 19 वर्ष के किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य संकट तेजी से बढ़ रहा है। इसमें सबसे सामान्य समस्याएं डिप्रेशन, एंग्जाइटी और बिहेवियरल डिसऑर्डर्स हैं, जो न केवल पढ़ाई और रिश्तों को प्रभावित करती हैं, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी कमजोर बनाती हैं।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि 15 से 29 वर्ष के युवाओं में आत्महत्या अब तीसरा सबसे बड़ा मृत्यु कारण बन चुका है। इसका मतलब यह है कि दुनिया का एक बड़ा हिस्सा उस मानसिक दर्द का सामना कर रहा है जो अक्सर दिखाई नहीं देता। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किशोरावस्था में इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया गया, तो ये आगे चलकर क्रॉनिक डिप्रेशन, एडिक्शन और रिश्तों में समस्याओं का रूप ले सकती हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सामाजिक और भावनात्मक दबाव आज के किशोरों की मानसिक स्थिति को सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर दिखने वाली “परफेक्ट लाइफ” की तुलना, पारिवारिक अस्थिरता, आर्थिक असुरक्षा और लगातार बदलता डिजिटल माहौल बच्चों को भीतर से अस्थिर कर रहा है। फैक्ट शीट का दावा है कि जो किशोर डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अधिक समय बिताते हैं, उनमें नींद में खलल, कम आत्म-सम्मान और उच्च तनाव स्तर पाया जाता है।
डब्ल्यूएचओ ने सरकारों और समाज से अपील की है कि वे स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, काउंसलिंग सेवाएँ और सामुदायिक सहयोग को प्राथमिकता दें।