क्या माता पार्वती के पसीने की बूंदों से हुई थी ‘बेल पत्र’ की उत्पत्ति?

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क्या माता पार्वती के पसीने की बूंदों से हुई थी ‘बेल पत्र’ की उत्पत्ति?

सारांश

माता पार्वती के पसीने की बूंदों से उत्पन्न बेल पत्र का महत्व जानें। जानिये कैसे यह भगवान शिव और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण है।

Key Takeaways

  • बेल पत्र का धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व है।
  • यह शिव की कृपा का प्रतीक है।
  • बेल पत्र में औषधीय गुण होते हैं।
  • बेल पत्र का सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
  • माता पार्वती से जुड़ी है इसकी उत्पत्ति।

नई दिल्ली, २५ जून (राष्ट्र प्रेस)। भोलेनाथ को प्रिय सावन का पवित्र माह जल्द ही शुरू होने वाला है। इस दौरान उनके पूजन का विशेष महत्व है। विश्व के नाथ की पूजा में बेल पत्र का शामिल होना अनिवार्य है।

हिंदू धर्म में बेल पत्र (बिल्व पत्र) का विशेष स्थान है। इसे 'शिवद्रुम' भी कहा जाता है। भोलेनाथ के लिए बेल पत्र अत्यंत पवित्र और प्रिय है, साथ ही यह शक्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है। बेल का पेड़ समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।

बेल पत्र की तीन पत्तियां त्रिफलक आकार में होती हैं, जो भगवान शिव के तीन नेत्रों, त्रिशूल या त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) का प्रतीक हैं। यह सत्व, रज और तम गुणों का भी प्रतिनिधित्व करता है, जो भक्त के अहंकार और सांसारिक बंधनों से मुक्ति का प्रतीक है।

बेल पत्र के महत्व का वर्णन 'बिल्वाष्टकम्' में मिलता है, जिसमें कहा गया है, “त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम।” यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके अर्पण से पुण्य फलों में वृद्धि होती है।

स्कंद पुराण में बेल वृक्ष की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि माता पार्वती के पसीने की बूंदों से बेल वृक्ष का जन्म हुआ था। धार्मिक कथा के अनुसार, माता पार्वती मंदराचल पर्वत पर तपस्या कर रही थीं, तभी उनके मस्तक से पसीने की बूंदें गिरकर बेल का पेड़ बनीं। माता पार्वती ने इसे ‘बिल्व वृक्ष’ नाम दिया और कहा कि इसके पत्तों से भोलेनाथ की पूजा करने वाले भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

बेल वृक्ष की जड़ों में गिरिजा और राधा रानी, तने में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी और फलों में कात्यायनी निवास करती हैं। इसके कांटों में भी कई शक्तियां समाहित हैं।

अब सवाल यह है कि भोलेनाथ को बेल पत्र इतना प्रिय क्यों है? इसका उत्तर है कि बेल पत्र की शीतलता और शुद्धता भगवान शिव की ‘रौद्र प्रकृति’ को शांत करती है। इसके त्रिफलक पत्ते शिव के त्रिनेत्र और त्रिशूल का प्रतीक होने के साथ-साथ भक्त के समर्पण को दर्शाते हैं।

शिव पुराण में भी बेल पत्र का उल्लेख है। मान्यता है कि इसके अर्पण से पापों का नाश होता है और भक्त को शांति मिलती है।

बेल पत्र सेहत के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। आयुर्वेद में बेल पत्र और इसके फल को औषधीय गुणों का खजाना माना जाता है। इनमें विटामिन सी, विटामिन ए, कैल्शियम, पोटैशियम, और फाइबर जैसे पोषक तत्व होते हैं। यह वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करता है।

आयुर्वेदाचार्य बताते हैं कि बेल पत्र में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं और कब्ज की समस्याओं में राहत देते हैं। बेल के पत्तों का रस मधुमेह रोगियों के लिए लाभदायक होता है, क्योंकि यह रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है।

इसके अलावा, बेल पत्र का उपयोग त्वचा रोगों, श्वसन संबंधी समस्याओं और सूजन कम करने में भी किया जाता है। गर्मियों में बेल का शर्बत शरीर को ठंडक प्रदान करता है और डिहाइड्रेशन से बचाता है।

Point of View

यह स्पष्ट है कि बेल पत्र का धार्मिक और औषधीय महत्व केवल आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और पारंपरिक चिकित्सा के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में उभरा है। हमें इसे संजोकर रखना चाहिए।
NationPress
25/06/2025

Frequently Asked Questions

बेल पत्र का धार्मिक महत्व क्या है?
बेल पत्र का धार्मिक महत्व भगवान शिव के पूजन में होता है, यह पवित्रता और शांति का प्रतीक है।
क्या बेल पत्र सेहत के लिए फायदेमंद है?
हां, बेल पत्र में कई औषधीय गुण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हैं।
बेल वृक्ष की उत्पत्ति कैसे हुई?
माता पार्वती के पसीने की बूंदों से बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी।
बेल पत्र के पत्तों का आकार क्या होता है?
बेल पत्र की तीन पत्तियां त्रिफलक आकार में होती हैं।
बेल पत्र का उपयोग कैसे किया जाता है?
बेल पत्र का उपयोग पूजा, औषधि और स्वास्थ्य लाभ के लिए किया जाता है।