क्या नाम भूलना याददाश्त की कमजोरी है या दिमाग की स्मार्टनेस?
सारांश
Key Takeaways
- नाम भूलना एक आम स्थिति है।
- यह याददाश्त की कमजोरी नहीं है।
- यह दिमाग की स्मार्ट कार्यप्रणाली का हिस्सा है।
- महत्वपूर्ण जानकारी प्राथमिकता
- संवेदनात्मक जानकारी ज्यादा याद रहती है।
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब आप किसी व्यक्ति से मिलते हैं और बातचीत करते हैं, तब भी उसके नाम को अगले ही पल भूल जाना आम बात है। लेकिन ऐसे में खुद को दोष देने की कोई आवश्यकता नहीं है। सेलिब्रिटी न्यूट्रिशनिस्ट पूजा मखीजा के अनुसार, नाम भूल जाना याददाश्त की कमजोरी या ब्रेन फॉग नहीं है, बल्कि यह दिमाग की एक चतुराई भरी रणनीति है। हमारा मस्तिष्क हमेशा यह तय करता है कि इस समय क्या सबसे महत्वपूर्ण है और अक्सर भावनाएं, बात का मतलब और समझ, जैसे साधारण लेबल पर भारी पड़ जाते हैं।
उन्होंने बताया कि नाम भूलना दरअसल याददाश्त की कमजोरी या ब्रेन फॉग नहीं है, बल्कि यह दिमाग की स्मार्ट कार्यप्रणाली का परिणाम है। लोग अक्सर इसे ध्यान न देना या खराब मेमोरी समझ लेते हैं, लेकिन वास्तव में यह हिप्पोकैंपस और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के बीच जानकारी को प्राथमिकता देने का तरीका है।
इस पर कई अध्ययन भी हुए हैं। अनुसंधान के अनुसार, भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण जानकारी मस्तिष्क में गहरी छाप छोड़ती है, जबकि साधारण नाम जैसे न्यूट्रल लेबल कमजोर तरीके से याद रहते हैं। बातचीत में सोशल कॉग्निशन यानी सामाजिक समझ अक्सर शब्दों की याददाश्त पर हावी हो जाती है। मस्तिष्क लगातार यह सवाल करता रहता है कि इस समय क्या सबसे ज्यादा मायने रखता है? और अधिकतर मामलों में, मतलब या भावना लेबल पर जीत जाती है। इसलिए लोग बातचीत का सार, एहसास और समझ को अच्छी तरह से याद रखते हैं, लेकिन नाम भूल जाते हैं।
उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि यह कोई ब्रेन फॉग नहीं है, न ही याददाश्त की कमजोरी और न ही चरित्र की कमी है। यह तो न्यूरल एफिशिएंसी है, यानी दिमाग का कुशल तरीके से काम करना। उन्होंने लोगों से अनुरोध किया कि सामान्य मस्तिष्क की क्रियाओं को शर्मिदगी का कारण बनाना बंद करें।