क्या थायरॉइड की समस्या से मिलेगी निजात? आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से समझें

सारांश
Key Takeaways
- आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से, थायरॉइड केवल एक ग्रंथि नहीं, बल्कि चयापचय का केंद्र है।
- जड़ी-बूटियों का सेवन और जीवनशैली में बदलाव आवश्यक हैं।
- योग और प्राणायाम थायरॉइड के लक्षणों को कम कर सकते हैं।
- नियमित दिनचर्या और सात्विक आहार से प्राकृतिक रूप से थायरॉइड को नियंत्रित किया जा सकता है।
- आधुनिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा का संयोजन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।
नई दिल्ली, 10 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्तमान में थायरॉइड एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है, जो अनेक व्यक्तियों को प्रभावित कर रही है। आधुनिक चिकित्सा इसे हार्मोनल असंतुलन के रूप में देखती है, जबकि आयुर्वेद इसे शरीर के गहरे असंतुलन का संकेत मानता है।
आयुर्वेद में थायरॉइड को 'अग्नि दोष', 'धातु विकृति' और 'त्रिदोष असंतुलन' के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें वात, पित्त और कफ दोषों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह दृष्टिकोण शरीर को एक समग्र इकाई मानते हुए उपचार पर जोर देता है, जिसमें थायरॉइड केवल एक ग्रंथि नहीं, बल्कि चयापचय और ऊर्जा संतुलन का केंद्र होता है।
आयुर्वेद के अनुसार, थायरॉइड ग्रंथि विशुद्ध चक्र (गले का चक्र) से जुड़ी होती है, जो 'जठराग्नि' (पाचन शक्ति) और 'धात्वग्नि' (ऊतकों की अग्नि) को नियंत्रित करती है। हाइपोथायरायडिज्म में वात और कफ की अधिकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप थकान, वजन बढ़ना और सुस्ती जैसे लक्षण प्रकट होते हैं।
वहीं, हाइपरथायरायडिज्म में पित्त की अधिकता के कारण चिड़चिड़ापन, वजन घटना और तेज धड़कन जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
इसके प्रबंधन के लिए आयुर्वेद जीवनशैली में बदलाव पर जोर देता है। इसमें पर्याप्त नींद, नियमित व्यायाम, तनाव प्रबंधन और आयोडीन व जिंक युक्त आहार शामिल हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, अश्वगंधा, गुग्गुलु, शिलाजीत और त्रिफला जैसी जड़ी-बूटियाँ थायरॉइड को संतुलित करने में सहायक होती हैं।
पंचकर्म जैसी शुद्धिकरण प्रक्रियाएँ शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालकर दोषों को संतुलित करती हैं। साथ ही सुबह 10 से 15 मिनट गुनगुनी धूप भी लेना चाहिए।
खासतौर से सूर्य नमस्कार, सर्वांगासन, मत्स्यासन और नौकासन का अभ्यास करना चाहिए और प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और उज्जायी करना चाहिए। ऐसा करने से चयापचय में सुधार होता है।
आयुर्वेदिक विशेषज्ञों का कहना है कि एक नियमित दिनचर्या, सात्विक आहार और ध्यान लगाने से थायरॉइड को प्राकृतिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। आधुनिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण का संयोजन न केवल इसके लक्षणों में राहत देता है, बल्कि शरीर के समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है।