क्या आपातकाल के 50 साल एक काला अध्याय हैं? आनंद मोहन ने इंदिरा गांधी के फैसले को बताया लोकतंत्र का मजाक

सारांश
Key Takeaways
- आपातकाल ने भारतीय लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाया।
- इंदिरा गांधी का निर्णय राजनीतिक संकट के कारण था।
- जनता ने तानाशाही का विरोध किया।
- संविधान की रक्षा के लिए संघर्ष आवश्यक है।
- आपातकाल का सबक हमें सतर्क रहने की आवश्यकता बताता है।
पटना, 25 जून (राष्ट्र प्रेस)। पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह ने आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने पर इसे देश के लिए एक काला अध्याय बताया। उन्होंने टिप्पणी की कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकतंत्र के साथ क्रूर मजाक किया।
पत्रकारों से चर्चा करते हुए आनंद मोहन ने 1975 के आपातकाल को याद करते हुए कहा कि यह देश के संवैधानिक इतिहास का सबसे दुखद दौर था।
आनंद मोहन ने बताया कि 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को राज नारायण की याचिका पर अमान्य घोषित कर दिया था। इसके बाद 24 जून को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण ने लाखों लोगों के साथ इंदिरा गांधी से इस्तीफे की मांग की। उसी रात, 25 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया, जिसने पूरे देश को कारागार में बदल दिया। लोकसभा का कार्यकाल छह साल कर दिया गया और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
उन्होंने कहा कि जयप्रकाश नारायण ने महंगाई, भ्रष्टाचार, शिक्षा की बदहाली और बेरोजगारी के खिलाफ संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था। इस आंदोलन ने जनता में जागरूकता पैदा की। आपातकाल के दौरान मीडिया, बुद्धिजीवियों और राजनेताओं पर कड़ा नियंत्रण था। फिर भी, रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) और अन्य ने इंदिरा गांधी को सलाह दी कि वे चुनाव करवाएं, क्योंकि उन्हें भारी बहुमत मिलेगा। लेकिन 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस का उत्तर भारत से पूरी तरह साफ हो गया। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।
आनंद मोहन ने आपातकाल को एक सबक बताते हुए कहा कि इसने साबित किया कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं। उन्होंने कहा, "इस देश की जनता ने दिखाया कि वह किसी भी तरह की तानाशाही को बर्दाश्त नहीं करेगी, चाहे वह सैन्य हो या राजनीतिक।"
उन्होंने जेपी आंदोलन के सेनानियों और समाजवादी नेताओं की भूमिका की सराहना की, जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल का सबक भूलना नहीं चाहिए। देश का संविधान और लोकतंत्र अडिग हैं और इनके साथ छेड़छाड़ की कोई भी कोशिश जनता स्वीकार नहीं करेगी।
आनंद मोहन ने जोर देकर कहा कि आपातकाल का यह 50वां वर्ष शासकों के लिए एक संदेश है कि वे लोकतंत्र और संविधान का सम्मान करें।