क्या करगहर विधानसभा में शिक्षा और विकास की चुनौतियां बड़ा मुद्दा बनेंगी?
सारांश
Key Takeaways
- करगहर क्षेत्र की जनसंख्या 5,67,156 है।
- शिक्षा और रोजगार की कमी बड़ी चुनौती है।
- यहां की सामाजिक संरचना चुनावी समीकरण को प्रभावित कर सकती है।
- कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है, लेकिन सिंचाई की कमी है।
- 2025 में महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर संभव है।
पटना, 31 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार विधानसभा चुनाव की दौड़ में करगहर सीट पर चर्चा में तेजी आई है। रोहतास जिले के सासाराम अनुमंडल में स्थित करगहर विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है। यह 257 गांवों से बना है और इसका निकटतम शहर जिला मुख्यालय सासाराम है। शहरी केंद्रों के अभाव में, यहां की आर्थिकी और सामाजिक जीवन मुख्यतः कृषि पर निर्भर है।
करगहर की ऐतिहासिक पहचान लंबे समय तक सासाराम से जुड़ी रही है। यह क्षेत्र न केवल प्रशासनिक बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी सासाराम का अभिन्न हिस्सा माना जाता रहा है। 2008 में परिसीमन के बाद इसे अलग विधानसभा क्षेत्र का दर्जा मिला और 2010 में यहां चुनाव हुआ। इससे पहले यह सासाराम विधानसभा का हिस्सा था।
शिक्षा के मामले में यह क्षेत्र अब भी पिछड़ा हुआ है। यहां उच्च शिक्षा संस्थानों का अभाव है और स्कूलों में संसाधनों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। युवाओं को बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए अक्सर दूसरे शहरों या राज्यों में जाना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी कमजोर है। यहां के कई पंचायतों में अब भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ठीक से काम नहीं कर रहे हैं।
चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, करगहर की कुल जनसंख्या 5,67,156 है। इनमें 2,94,543 पुरुष और 2,72,613 महिलाएं हैं। वहीं, कुल मतदाताओं की संख्या 3,29,466 है, जिनमें 1,72,706 पुरुष, 1,56,750 महिलाएं और 10 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं।
सामाजिक संरचना के दृष्टिकोण से, यहां अनुसूचित जातियों की भागीदारी लगभग 20.41 फीसदी है, जबकि मुस्लिम मतदाता लगभग 6.4 फीसदी हैं। ओबीसी और सवर्ण समुदायों की भी मजबूत उपस्थिति है, जो चुनावी समीकरण को निर्णायक बनाती है।
करगहर विधानसभा की सबसे बड़ी चुनौतियां शिक्षा, रोजगार और बुनियादी ढांचा हैं। ग्रामीण इलाकों में सड़क, बिजली और स्वास्थ्य सेवाएं अब भी अधूरी हैं। कृषि यहां की रीढ़ है, लेकिन सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण किसानों को हर साल नुकसान झेलना पड़ता है। युवाओं में रोजगार की कमी और पलायन एक गंभीर समस्या है। इन सबके बीच, लोग उम्मीद करते हैं कि जो भी सरकार बने, वह बुनियादी सुविधाओं को सुधारने में ध्यान देगी।
करगहर में ओबीसी, सवर्ण और दलित वोटरों का मिश्रण इसे हर चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र बना देता है। राजद का यादव-मुस्लिम समीकरण, जदयू का कुर्मी-दलित आधार और भाजपा की सवर्ण पकड़ तीनों दलों को मजबूती प्रदान करती है। 2025 के चुनाव में यहां महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।