क्या प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो. रामदरश मिश्र का 101 वर्ष की आयु में निधन हुआ?
सारांश
Key Takeaways
- रामदरश मिश्र का योगदान हिंदी साहित्य में अमूल्य है।
- उन्होंने 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें 32 काव्य संग्रह शामिल हैं।
- उनकी रचनाएं ग्रामीण जीवन की सच्चाइयों को उजागर करती हैं।
- उन्हें पद्म श्री और सरस्वती सम्मान जैसे पुरस्कार से नवाजा गया।
- मुख्यमंत्री ने उनके निधन को साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया।
लखनऊ, 1 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य जगत में शोक की छाया छा गई है। मशहूर कवि, लेखक और पूर्व प्रोफेसर रामदरश मिश्र का 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका निधन गोरखपुर स्थित उनके निवास पर हुआ।
पद्म श्री से सम्मानित मिश्र जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में अद्वितीय योगदान दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे हिंदी साहित्य के लिए एक अमूल्य क्षति बताया है।
सीएमओ सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदी साहित्य के क्षेत्र में प्रोफेसर रामदरश मिश्र का निधन अपूरणीय क्षति है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दें और शोकाकुल परिवार को दुःख सहन करने की शक्ति प्रदान करें।
रामदरश मिश्र का जन्म 15 अगस्त 1924 को गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे साहित्य अकादमी और विभिन्न विश्वविद्यालयों से जुड़े। सात दशकों से अधिक समय तक सक्रिय रहते हुए उन्होंने 150 से ज्यादा पुस्तकें लिखीं, जिनमें 32 काव्य संग्रह शामिल हैं।
उनकी प्रमुख कृतियां 'मैं तो यहां हूं' (साहित्य अकादमी पुरस्कार), 'बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे' (सरस्वती सम्मान 2021) और 'बिना दरवाजे का मकान' हैं। ये रचनाएं ग्रामीण भारत की सादगी, किसानों की पीड़ा और आधुनिकता के द्वंद्व को बखूबी चित्रित करती हैं।
मिश्र जी को 2025 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया, जो उनके जीवन के अंतिम वर्षों में मिला सम्मान था। साहित्यकारों का मानना है कि उनकी कविताएं हिंदी को जन-जन तक पहुंचाने वाली सेतु बन गईं।