क्या केरल में 19 लोगों की जान लेने वाला ब्रेन-ईटिंग अमीबा वास्तव में क्या है?

सारांश
Key Takeaways
- अमीबिक मेनिन्जाइटिस एक गंभीर संक्रमण है।
- दूषित पानी
- जलवायु परिवर्तन
- यदि लक्षण
- जल स्रोतों की सुरक्षा
नई दिल्ली, 18 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। डॉक्टरों का कहना है कि दूषित पानी के संपर्क में आने से ब्रेन-ईटिंग अमीबा शरीर में प्रवेश करता है, जिससे व्यक्ति संक्रमित हो जाता है। केरल में इस अमीबा के कारण तीन साल के बच्चे समेत 19 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। चिकित्सकों ने लोगों से तालाबों और जलाशयों में तैरने से बचने की अपील की है।
अमीबिक मेनिन्जाइटिस एक दुर्लभ लेकिन घातक सेंट्रल नर्वस सिस्टम संक्रमण है, जो मीठे पानी, तालाबों और नदियों में पाए जाने वाले फ्री-लिविंग अमीबा, नेगलेरिया फाउलेरी के कारण होता है, जिसे दिमाग खाने वाला अमीबा भी कहा जाता है।
केरल में इस मस्तिष्क संक्रमण के 61 पुष्ट मामले और 19 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें तीन महीने के शिशु से लेकर 91 वर्षीय वृद्ध तक शामिल हैं।
कोझिकोड सरकारी मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर और नोडल अधिकारी डॉ. टीएस अनीश ने राष्ट्र प्रेस को बताया, "अमीबायोसिस या अमीबिक मेनिन्जाइटिस एक दुर्लभ बीमारी है, जिसका निदान बहुत कठिन है। यह एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) में से एक है, जिसका पता लगाना बहुत मुश्किल है।"
हालांकि, निपाह प्रकोप के कारण एक समर्पित प्रणाली विकसित हुई है जो एईएस मामलों का निदान कर सकती है। विशेषज्ञों ने कहा कि इससे अमीबिक मैनिंजाइटिस के मामलों में वृद्धि देखी गई है।
उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को संक्रमणों की बढ़ती संख्या के लिए जिम्मेदार ठहराया।
अनीश ने कहा, "जलाशयों या तालाब के पानी का तापमान बढ़ने पर थर्मोफिलिक जीव बढ़ते हैं, और हमारी वॉटर बॉडीज में प्रदूषण की समस्या भी गंभीर है।"
विशेषज्ञ ने बताया कि केरल में इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर कम है; यह दुनिया भर में दर्ज अमीबिक मेनिंजाइटिस की सबसे कम दरों में से एक है।
अनीश ने कहा, "नेग्लेरिया फाउलेरी अमीबा के कारण होने वाले अमीबिक मेनिंजाइटिस की वैश्विक मृत्यु दर लगभग 97 से 98 प्रतिशत है।"
शहर के एक प्रमुख अस्पताल की न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंशु रोहतगी ने इस बीमारी के प्रकोप को तेजी से बढ़ते शहरीकरण और क्लोरिनरहित और कीटाणुयुक्त पानी में तैरने से जोड़ा।
उन्होंने कहा, "यह नेग्लेरिया फाउलेरी अमीबा नाक के छिद्रों से प्रवेश करता है और मस्तिष्क में जाकर अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस का कारण बनता है।"
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, यदि समय पर पता चल जाए तो यह पूरी तरह से इलाज योग्य है।
रोहतगी ने बताया कि संक्रमण की पहचान के लिए सबसे जरूरी है लम्बर पंक्चर या सीएसएफ (सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड) जांच।
अनीश ने कहा कि "यह बीमारी इतनी दुर्लभ नहीं है, लेकिन भारत के अधिकांश हिस्सों में इसका निदान बहुत कम होता है।"
विशेषज्ञों ने बताया कि यह संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता और अमीबा युक्त पानी निगलने से भी नहीं होता। उन्होंने लोगों से प्रदूषित जल स्रोतों में तैरने से बचने की सलाह दी।