क्या 44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में डिफेंस पवेलियन और झारखंड की प्रदर्शनी ने सबका ध्यान खींचा?

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क्या 44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में डिफेंस पवेलियन और झारखंड की प्रदर्शनी ने सबका ध्यान खींचा?

सारांश

44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में डिफेंस पवेलियन और झारखंड की प्रदर्शनी ने दर्शकों का ध्यान खींचा। जानें इस विशेष पवेलियन में क्या कुछ देखने को मिला।

Key Takeaways

  • डिफेंस पवेलियन 10 साल बाद आयोजित हुआ।
  • झारखंड पवेलियन ने हरित विकास को प्रदर्शित किया।
  • रेशम उत्पादन में 35 दिन का समय लगता है।

नई दिल्ली, 20 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। दिल्ली में चल रहे 44वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में 10 साल बाद डिफेंस पवेलियन का आयोजन किया गया है, जो दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

इस पवेलियन में भारतीय रक्षा उद्योग के विभिन्न पहलुओं का प्रदर्शन किया गया है, जिसमें आधुनिक हथियारों, मशीन गन, पनडुब्बी मॉडल, ड्रोन और रॉकेट लॉन्चर जैसे अत्याधुनिक उपकरण शामिल हैं। इसके अलावा, ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल किए गए हथियारों की झलक भी देखने को मिली। दर्शकों ने इस पवेलियन को देश की रक्षा क्षमताओं को जानने का एक बेहतरीन अवसर बताया।

वहीं, झारखंड पवेलियन ने भी इस वर्ष विशेष चर्चा बटोरी है। यहां वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्य की हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास के प्रयासों को प्रदर्शित किया। सिसल (एगेव) आधारित उत्पादों और नवाचारों ने झारखंड की उभरती संभावनाओं को उजागर किया है। सिसल का उपयोग रस्सी, बैग, मैट और हैंडक्राफ्ट उत्पादों के निर्माण में होता है, साथ ही इससे बायो-एथेनॉल और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएं भी बढ़ रही हैं।

झारखंड पवेलियन में राज्य की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा का अद्भुत प्रदर्शन किया गया है। स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए ईको-फ्रेंडली जूट उत्पाद, जैसे बैग, गृह सज्जा सामग्री और हस्तनिर्मित वस्तुएं, झारखंड की कला और ग्रामीण कारीगरी की पहचान प्रस्तुत कर रही हैं। इन उत्पादों ने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में नए अवसरों का द्वार खोला है।

इसके साथ ही, पवेलियन में रेशम निर्माण की प्रक्रिया भी दर्शाई गई। इस वर्ष के मेले में झारखंड ने न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर, बल्कि हरित विकास और पर्यावरणीय पहल पर भी जोर दिया है।

रेशम बनाने वाले व्यापारी उदय कृष्ण ने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए बताया कि वे झारखंड से आए हैं। रेशम के चार प्रकार हैं, लेकिन उन्होंने दो ही लाए हैं। इसे तैयार करने में कम से कम 35 दिन

उन्होंने आगे बताया कि एक तितली के अंडे देने के बाद 10 दिन में रेशम के कीड़े विकसित होते हैं, जो 35 दिन तक पत्तियां खाते हैं। इसके बाद रेशम का निर्माण होता है और 1 किलो रेशम बनाने में लगभग 1,500 रुपए का खर्च आता है।

मेले में आए पर्यटकों ने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए कहा कि हमें यहां आने पर बहुत अच्छा लग रहा है। लंबी अवधि के बाद इसका आयोजन होता है। हमें बताया गया था कि इसीलिए हम देखने के लिए आए थे, हमें गर्व करना चाहिए और यहां से सीख लेकर जाना चाहिए।

Point of View

NationPress
28/11/2025

Frequently Asked Questions

डिफेंस पवेलियन में क्या दिखाया गया?
डिफेंस पवेलियन में आधुनिक हथियार, मशीन गन, पनडुब्बी मॉडल, ड्रोन और रॉकेट लॉन्चर जैसे उपकरण प्रदर्शित किए गए हैं।
झारखंड पवेलियन में क्या विशेष है?
झारखंड पवेलियन ने हरित अर्थव्यवस्था और सतत विकास की दिशा में किए गए प्रयासों को प्रदर्शित किया है।
रेशम बनाने की प्रक्रिया में कितना समय लगता है?
रेशम बनाने में कम से कम 35 दिन का समय लगता है।
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