क्या गयाजी में स्वयं पिंडदान कर पाना है एक अनोखी परंपरा?

सारांश
Key Takeaways
- गयाजी में स्वयं पिंडदान की परंपरा है।
- यह प्रक्रिया पितरों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण है।
- गयाजी का धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व पुराणों में वर्णित है।
- पितृ पक्ष के दौरान लाखों श्रद्धालु गयाजी आते हैं।
- यह व्यवस्था उन लोगों के लिए है जो अकेले हैं।
गयाजी, 18 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। पितरों के उद्धार और श्राद्ध कर्म के लिए देश में कई तीर्थस्थल हैं, परंतु बिहार का गयाजी सदैव मोक्षस्थली के रूप में पूजनीय रहा है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पिंडदान करने से 108 कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसी कारण, पितृ पक्ष के दौरान लाखों श्रद्धालु गयाजी का दौरा करते हैं। एक विशेष बात यह है कि यहाँ व्यक्ति स्वयं अपना पिंडदान कर सकता है।
गयाजी के धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है। वायु पुराण, गरुड़ पुराण और विष्णु पुराण में गयाजी का विशेष स्थान बताया गया है, और पारंपरिक मान्यता है कि यहाँ किए गए श्राद्ध से पितर जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं।
गयाजी में भस्मकूट पर्वत पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ मंगलागौरी मंदिर से जुड़े परिवार के सदस्य प्रीतम गिरी ने बताया कि उनके पूर्वज माधवगिरी दंडी स्वामी ने 1350 ईस्वी में मंदिर का जीर्णोद्धार किया था।
प्रीतम गिरी ने कहा कि गयाजी में पितृपक्ष चल रहा है और यहाँ विभिन्न प्रकार के श्राद्ध होते हैं। मंगलागौरी मंदिर के पास ही जनार्दन स्वामीपिंडदान की परंपरा प्रचलित है। इसका अर्थ है कि किसी व्यक्ति के आगे-पीछे किसी और के होने की आवश्यकता नहीं। यदि आपको चिंता है कि आपकी मृत्यु के बाद आपके संतान या परिवार के लोग पिंडदान नहीं करेंगे, तो आप जीवित रहते ही अपने लिए पिंडदान कर सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपाय कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था उन लोगों के लिए है, जिनका कोई नहीं है।
गिरी के अनुसार, यदि आपके मन में शंका है कि मरने के बाद मोक्ष मिलेगी या हम भटकेंगे, तो जीते जी आप यहाँ आकर अपने आत्म-स्वयं पिंडदान से यह चिंता मिटा सकते हैं।