क्या गोविंदगंज विधानसभा सीट पर भाजपा अपनी जीत दोहरा पाएगी?

सारांश
Key Takeaways
- गोविंदगंज विधानसभा सीट का इतिहास कांग्रेस से भाजपा तक का रहा है।
- भाजपा ने 2020 में जीत दर्ज कर मजबूत वोट बैंक तैयार किया।
- लोजपा की पहचान क्षेत्रीय दल के रूप में बनी है।
- स्थानीय मुद्दे चुनावी रणनीति में महत्वपूर्ण हैं।
- मतदाता नए समीकरण बनाते हैं, जो बड़े दलों को प्रभावित करते हैं।
पटना, 30 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की गोविंदगंज विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद दिलचस्प रहा है। पहले यह सीट कांग्रेस का अभेद्य गढ़ मानी जाती थी, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों ने इसे भाजपा और अन्य दलों के लिए भी महत्वपूर्णता प्रदान की है।
साल 1952 से 1967 तक कांग्रेस ने यहां लगातार जीत हासिल की। परंतु, 1980 के बाद से पार्टी दोबारा अपने परचम को लहराने में असफल रही। वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद इस विधानसभा में दक्षिणी बरियारिया, पहाड़पुर और अरेराज जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया, जिससे राजनीतिक समीकरण में बदलाव आया।
2020 के चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सुनील मणि तिवारी ने कड़ी मेहनत और आक्रामक प्रचार के बल पर कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को हराया। तिवारी को 65,544 वोट प्राप्त हुए, जबकि ब्रजेश कुमार को 37,620 वोट मिले। इस जीत ने यह साबित कर दिया कि भाजपा का यहां एक मजबूत वोट बैंक बन चुका है।
2015 का चुनाव लोजपा के लिए विशेष रहा। पार्टी के उम्मीदवार राजू तिवारी ने कांग्रेस के ब्रजेश कुमार को बड़े अंतर से हराया और 74,685 वोट प्राप्त किए। यह जीत लोजपा की क्षेत्र में मजबूत पहचान बनाने में सहायक रही।
वहीं, 2010 के चुनाव में जदयू की मीना द्विवेदी ने 33,859 वोटों के साथ लोजपा के राजू तिवारी (25,454 वोट) को मात दी। जदयू की यह सफलता विकास और स्थानीय मुद्दों पर आधारित राजनीति की प्रभावशीलता को दर्शाती है।
गोविंदगंज विधानसभा सीट पर हर चुनाव में मुकाबला दिलचस्प और अप्रत्याशित होता है। समय के बदलाव के साथ, यह स्पष्ट है कि गोविंदगंज के मतदाता हमेशा नए राजनीतिक समीकरण बनाते हैं, और उनका निर्णय बड़े दलों की रणनीतियों को बदलने के लिए मजबूर कर देता है।