क्या गूल्येल्मो मार्कोनी की क्रांतिकारी खोज ने दुनिया को बदल दिया?

सारांश
Key Takeaways
- गूल्येल्मो मार्कोनी ने 1897 में रेडियो का आविष्कार किया।
- उन्होंने वायरलेस तकनीक की नींव रखी।
- मार्कोनी को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- उनकी खोज ने संचार के तरीके को बदल दिया।
- आज की वायरलेस दुनिया का श्रेय उन्हें जाता है।
नई दिल्ली, १ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जरा सोचिए उस समय के बारे में, जब सूचनाएं केवल कागजों पर थीं और संचार तारों के माध्यम से होता था। फिर एक नई परिभाषा आई, रेडियो का आविष्कार हुआ और इसके पीछे थे इटली के एक प्रतिभाशाली वैज्ञानिक, जिनका नाम था गूल्येल्मो मार्कोनी। हर साल २ जुलाई की तारीख विज्ञान और मानव संचार के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का स्मरण कराती है।
यही वह दिन है जब गूल्येल्मो मार्कोनी ने अपनी ऐतिहासिक खोज रेडियो के लिए पेटेंट प्राप्त किया। यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह संचार तंत्र को तार-मुक्त (वायरलेस) बनाने की शुरुआत थी। आज की वायरलेस दुनिया, जिसमें मोबाइल, ब्लूटूथ, वाईफाई और सैटेलाइट कम्युनिकेशन सामान्य हो चुके हैं, की नींव मार्कोनी ने ही रखी थी।
गूल्येल्मो मार्कोनी का जन्म १८७४ में इटली के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। बचपन से ही उन्हें विज्ञान और विशेषकर विद्युत तरंगों में गहरी रुचि थी। उन्होंने जर्मन वैज्ञानिक हेनरिच हर्ट्ज़ के प्रयोगों का अध्ययन किया और उन्हें आगे बढ़ाने की ठानी। १८९६ में मार्कोनी ने पहली बार वायरलेस टेलीग्राफी के यंत्र का सार्वजनिक प्रदर्शन किया। यह यंत्र एक प्रकार का ट्रांसमीटर और रिसीवर था, जो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से संदेश भेजने की क्षमता रखता था। लेकिन विडंबना यह थी कि अपने ही देश इटली में उन्हें अधिक समर्थन नहीं मिला।
इसके बाद, १८९६ में ही मार्कोनी इंग्लैंड पहुंचे, जहाँ उनकी मुलाकात सर विलियम प्राइस से हुई। यह एक महत्वपूर्ण पल था। इंग्लैंड ने उनके प्रयोगों को स्वीकार किया और उन्हें आगे बढ़ाने का मंच उपलब्ध कराया। मार्कोनी ने तेजी से प्रयोग किए और पहले से अधिक दूरी तक संदेश भेजने में सफल हुए। फिर आया वह ऐतिहासिक दिन, १ जुलाई १८९७, जब मार्कोनी को रेडियो टेलीग्राफ के लिए पेटेंट मिला, जिसे अब दुनिया रेडियो के जन्म के रूप में जानती है। अगले दिन, अर्थात् २ जुलाई को मार्कोनी की खोज को सार्वजनिक और औपचारिक मान्यता मिली। इस दिन को रेडियो क्रांति के आरंभ के रूप में याद किया जाता है।
मार्कोनी ने १८९९ में वह कर दिखाया जिसकी उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। उन्होंने फ्रांस और इंग्लैंड के बीच समुद्र पार कर सिग्नल भेजा। यह प्रयोग एक ऐतिहासिक उदाहरण बन गया कि रेडियो तरंगें सीमाओं से परे संवाद स्थापित कर सकती हैं। इस प्रयोग ने सिद्ध कर दिया कि वायरलेस तकनीक वैश्विक संचार की रीढ़ बन सकती है।
मार्कोनी की इस खोज ने आधुनिक रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल, इंटरनेट और वायरलेस कम्युनिकेशन सिस्टम की आधारशिला रखी। इसके लिए उन्हें १९०९ में फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार भी मिला। आज हम जिस 5जी, ब्लूटूथ, वाईफाई और जीपीएस जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हैं, वह उसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की शक्ति पर आधारित हैं, जिसे मार्कोनी ने दुनिया को समझाया।