क्या भारत को मजबूत संस्थागत ढांचे, सुव्यवस्थित नियमन और प्रभावी उद्योग संबंधों की आवश्यकता है?

सारांश
Key Takeaways
- मजबूत संस्थागत ढांचे की आवश्यकता है।
- सुव्यवस्थित नियमन का महत्व।
- प्रभावी उद्योग संबंधों की आवश्यकता।
- अनुसंधान और विकास में सुगमता को प्राथमिकता देना।
- राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। नीति आयोग के एक कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में गहन वैज्ञानिक क्षमताएं होने के बावजूद, प्रयोगशाला इनोवेशन को समाज, उद्योग और बाजारों तक तेजी से पहुँचाने के लिए मजबूत संस्थागत ढांचे, सुव्यवस्थित नियमन और प्रभावी उद्योग संबंधों की आवश्यकता है।
इस परामर्श में भारत के रिसर्च और डेवलपमेंट इकोसिस्टम को मज़बूत करने पर चर्चा के लिए संस्थागत लीडर्स, वाइस चांसलर्स और वैज्ञानिक मंत्रालयों के प्रतिष्ठित लोग शामिल हुए।
भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के अध्यक्ष प्रोफेसर आशुतोष शर्मा और वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महानिदेशक डॉ एन कलैसेल्वी ने अपने मुख्य भाषणों में भारत के अनुसंधान परिदृश्य की पुनर्कल्पना की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जहाँ अनुसंधान एवं विकास में सुगमता को प्राथमिकता दी जाए।
तेलंगाना के राज्यपाल जिश्नु देव वर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि आत्मनिर्भर भारत का विजन एक मजबूत आरएंडडी आर्किटेक्चर का निर्माण करना है।
उन्होंने कहा कि भारत को न केवल नए ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, बल्कि इसे ऐसी तकनीकों, प्रक्रियाओं और समाधानों में बदलना चाहिए, जो राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मजबूत करें।
इस कार्यक्रम में, परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोडकर और नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. सारस्वत ने अनुसंधान संस्थानों को इंडस्ट्री क्लस्टर, स्टार्टअप्स और सार्वजनिक क्षेत्र के एप्लीकेशन से जोड़ने के नए सिरे से ध्यान देने का आह्वान किया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ज्ञान सृजन से लेकर परिनियोजन तक की वैल्यू चेन निर्बाध और कुशल हो।
नीति आयोग के एक बयान के अनुसार, प्रतिभागियों ने रेगुलेटरी फ्रेमवर्क्स, फंडिंग मैकेनिज्म, एडवांस्ड नॉलेज सोर्स के एक्सेस, संस्थागत प्रक्रियाओं और अप्लाइड एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च के लिए मॉडल्स पर गहन विचार-विमर्श किया।
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत का वैज्ञानिक भविष्य न केवल ईज ऑफ डूइंग रिसर्च से परिभाषित होगा, बल्कि उससे भी बढ़कर शोध को मूर्त परिणामों में बदलने की सुगमता से परिभाषित होगा।
बयान के अनुसार, "पॉलिसी डिजाइन, फंडिंग प्राथमिकताओं और संस्थागत ढांचों में ट्रांसलेशन को एक मूल सिद्धांत के रूप में शामिल करना होगा, जिससे भारत का रिसर्च एंटरप्राइस ज्ञान सृजन से आगे बढ़कर ऐसे इनोवेशन पेश करे जो इंडस्ट्री को मजबूत करे, राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दे और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाए।"