क्या भारत की एलपीजी खपत बीते 8 वर्षों में 44 प्रतिशत बढ़ी?
सारांश
Key Takeaways
- भारत की एलपीजी खपत में 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष 25 में खपत 31.3 मिलियन मीट्रिक टन पहुँच गई।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ने रिफिल की संख्या में वृद्धि की है।
- भारत की कुल मांग का 55-60 प्रतिशत आयात से पूरा होता है।
- अमेरिका से समझौता देश की आपूर्ति में विविधता लाएगा।
नई दिल्ली, 26 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में एलपीजी की खपत पिछले आठ वर्षों में 44 प्रतिशत बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 31.3 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुँच गई है, जबकि यह वित्त वर्ष 17 में 21.6 एमएमटी थी। यह जानकारी बुधवार को जारी की गई एक रिपोर्ट में साझा की गई।
रिपोर्ट के अनुसार, परिवारों द्वारा रिफिल भराने की संख्या में वृद्धि और एलपीजी की उपलब्धता में सुधार के कारण मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। यह अनुमान है कि यह वित्त वर्ष 26 तक 33-34 एमएमटी तक पहुँच सकती है।
क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के तहत लाभार्थियों द्वारा भरे जाने वाले औसत घरेलू एलपीजी रिफिल की संख्या वित्त वर्ष 17 में 3.9 सिलेंडर से बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 4.5 प्रति वर्ष हो गई है। इसका कारण कम दाम, बेहतर डिलीवरी नेटवर्क और दैनिक खाना पकाने की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए एलपीजी पर बढ़ती निर्भरता है।
गैर-उज्ज्वला लाभार्थियों द्वारा हर साल 6-7 सिलेंडर भरे जा रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि व्यावसायिक और औद्योगिक उपयोग के लिए एलपीजी की हिस्सेदारी जो वित्त वर्ष 17 में कुल मांग का 10 प्रतिशत थी, वित्त वर्ष 25 में बढ़कर 16 प्रतिशत हो गई है। यह फूड सर्विसेज, संस्थागत रसोई और छोटे निर्माण क्लस्टरों द्वारा एलपीजी को अपनाने के कारण संभव हुआ है।
दूसरी ओर, मांग में वृद्धि के साथ देश का वार्षिक एलपीजी उत्पादन भी बढ़कर वित्त वर्ष 25 में 12.8 एमएमटी हो गया, जो कि वित्त वर्ष 17 में 11.2 एमएमटी पर था।
रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी एलपीजी मांग को पूरा करने के लिए मुख्यतः आयात पर निर्भर है। देश की कुल मांग का 55-60 प्रतिशत आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है।
हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच 2.2 मिलियन टन प्रति वर्ष एलपीजी आपूर्ति का समझौता हुआ है, जिससे देश की आपूर्ति में विविधता आने की उम्मीद है। ऐतिहासिक रूप से, भारत ने आपूर्ति के लिए मध्यपूर्व के देशों पर निर्भरता बनाए रखी है।
रिपोर्ट में कहा गया है, "हालांकि इस डील के रणनीतिक फायदे काफी हैं, लेकिन फ्रेट से जुड़ी लैंडेड कॉस्ट सेंसिटिविटीज आने वाले समय में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकती हैं।"