क्या सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक संस्थानों में आरटीई लागू करने की याचिका खारिज की?
सारांश
Key Takeaways
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय अल्पसंख्यक संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा करता है।
- आरटीई अधिनियम का अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू होना नहीं है।
- याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।
- अदालत ने याचिका को अवैध करार दिया।
- संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर की गई थी।
नई दिल्ली, 12 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा संचालित मदरसों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों पर 'राइट टू एजुकेशन' (आरटीई) अधिनियम लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार लगाई। जस्टिस बीवी नागरथना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने न केवल याचिका पर सुनवाई से इनकार किया, बल्कि याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया।
बेंच ने स्पष्ट कहा कि याचिकाकर्ता ने वर्ष 2014 में आए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के फैसले (प्रमती एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ) को चुनौती देने की अवैध कोशिश की है, जबकि इस फैसले में साफ कहा गया था कि आरटीई अधिनियम अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होता।
अदालत ने कहा, "आप सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रिट याचिका के जरिए चुनौती नहीं दे सकते। ऐसी याचिकाएं न्यायपालिका की नींव को कमजोर करने का प्रयास हैं। हम याचिकाकर्ता पर सिर्फ एक लाख रुपये का जुर्माना लगा रहे हैं, लेकिन इसे अवमानना का मामला बनने से रोकने के लिए खुद को सीमित रख रहे हैं।"
यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई थी। इसमें मांग की गई थी कि आरटीई अधिनियम की धारा 12(1)(सी), जिसमें निजी स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण अनिवार्य है, अल्पसंख्यक संस्थानों पर भी लागू हो।
याचिकाकर्ता का दावा था कि 'प्रमती' फैसले के कारण बड़ी संख्या में बच्चों को विविधता और समावेशन वाले वातावरण में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार नहीं मिल पा रहा है।
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि कई अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान आम वर्ग के छात्रों को वाणिज्यिक आधार पर दाखिला देते हैं, लेकिन कमजोर वर्गों के बच्चों को शामिल करने की संवैधानिक और विधिक जिम्मेदारी से बचते हैं। उसके अनुसार यह व्यवहार अनुच्छेद 14, 15(4) और 21ए का स्पष्ट उल्लंघन है और अल्पसंख्यक संस्थानों को अनुच्छेद 30(1) के तहत दी गई स्वायत्तता का दुरुपयोग है।
इससे पहले अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य दो जजों की पीठ ने एक पीआईएल को मुख्य न्यायाधीश के पास भेजा था, जिसमें यह मांग की गई थी कि 6 से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को पढ़ाने वाले सभी स्कूलों (अल्पसंख्यक संस्थानों सहित) में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) अनिवार्य की जाए।