क्या केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के खिलाफ असंतोष का स्वर उठना शुरू हो गया है?
सारांश
Key Takeaways
- पिनाराई विजयन की लंबे समय तक चली अजेयता अब खतरे में है।
- स्थानीय निकाय चुनावों में मिली हार ने पार्टी में असंतोष को जन्म दिया है।
- माकपा के भीतर पहली बार उनकी कार्यशैली पर सवाल उठाए गए हैं।
- क्या विजयन अपनी रणनीति में बदलाव करेंगे? यह महत्वपूर्ण सवाल है।
- राजनीति में स्थिरता हमेशा परिवर्तन की मांग करती है।
तिरुवनंतपुरम, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने लगभग तीन दशकों से राज्य की माकपा में अपनी पकड़ बनाई है। उन्होंने पहले एक कुशल संगठनकर्ता की तरह और फिर एक निर्विवाद प्रशासक के रूप में अपनी पहचान बनाई है।
उनकी पार्टी और सरकार पर पकड़ एक रात में नहीं बनी। 1998 में राज्य सचिव बनने के बाद, उन्होंने कैडर आधारित पार्टी को सुनियोजित तरीके से अपने नियंत्रण में लिया। 2014 में अपने पद से हटने तक, उन्होंने आंतरिक असंतोष को कम किया, गुटबाजी पर काबू पाया, और राज्य माकपा में सत्ता का केंद्रीकरण किया।
2016 के बाद, यह वर्चस्व और भी बढ़ गया, जब विजयन ने उस समय के वाम दलों के प्रमुख नेता वी.एस. अच्युतानंदन को पीछे छोड़कर मुख्यमंत्री पद संभाला। चुनावी प्रचार उनके कंधों पर रहा, लेकिन सत्ता पूरी तरह विजयन के हाथ में आ गई।
मुख्यमंत्री बनने के बाद से हालिया स्थानीय निकाय चुनावों में झटके तक, विजयन लगभग आलोचना से परे रहे। माकपा और व्यापक वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) में उनके खिलाफ कोई खुला विरोध नहीं था।
अधिकांश निर्णयों पर सवाल नहीं उठे, आलोचना सीमित थी और निष्ठा बिना सवाल के समर्थन में बदल गई। उनके समर्थकों ने मुख्यमंत्री को लगभग अजेय स्थिति में ले जाने का काम किया।
इसी पृष्ठभूमि में, बुधवार को हुई माकपा की बैठक में पहली बार नेतृत्व के एक हिस्से ने विजयन की कार्यशैली को तानाशाही प्रवृत्ति वाला बताते हुए सवाल उठाए।
हालांकि यह आलोचना संयमित थी, लेकिन इसका सार्वजनिक रूप से आना इस बात का संकेत है कि वर्षों से चला आ रहा मौन अब टूट रहा है। जो बातें पहले गलियारों में गुप्त थीं, वे अब पार्टी की औपचारिक चर्चा का हिस्सा बन गई हैं।
इस बदलाव का मुख्य कारण स्थानीय निकाय चुनावों में मिली हार है, जिसने विजयन की अजेयता की छवि को हिला दिया। माकपा में चुनावी झटके अक्सर समीकरण बदल देते हैं, और इसका कई उदाहरण इतिहास में देखने को मिलता है।
अब एक बड़ा सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक क्षणिक झटका है या किसी गहरे बदलाव की शुरुआत। क्या विजयन अपनी रणनीति में बदलाव करेंगे, पकड़ ढीली करेंगे और पार्टी के सामूहिक ढांचे में असहमति के लिए जगह देंगे? या फिर वे अपना नियंत्रण फिर से सख्ती से स्थापित करेंगे और यह दिखाएंगे कि उनकी सत्ता अब भी अडिग है?