क्या झारखंड के अफीम के लिए बदनाम गांव में उगेगी 'उम्मीदों' की नई फसल?
सारांश
Key Takeaways
- अफीम की खेती को समाप्त करने का संकल्प
- जलस्रोतों की सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास
- रबी की फसल की तैयारी
- गांव का विकास 'जल से, बल से' की नीति पर
- हरियाली की दिशा में नया कदम
खूंटी, 13 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड के ओतोंगओड़ा गांव और इसके सात टोलों में इस बार उम्मीदों की नई फसल की तैयारी की जा रही है, जबकि ये गांव कभी अफीम की खेती के लिए बदनाम थे। इस पहाड़ी क्षेत्र के निवासियों ने सामूहिक संकल्प लिया है कि अब वे अफीम की खेती को समाप्त करेंगे।
गांव में पानी के प्राकृतिक नालों और छोटे जलस्रोतों को बचाकर रबी की फसल उगाने का निर्णय लिया गया है। बुधवार और गुरुवार को गांव के 300 से अधिक पुरुष और महिलाएं एकत्रित हुए। उन्होंने श्रमदान करके जलस्रोतों की सुरक्षा के लिए आठ बोरी बांध बनाये। इन बोरियों में रेत भरकर पानी का बहाव रोकने का काम किया गया।
ये बांध ओतोंगओड़ा, रूईटोला, सिदोम जिलाद, निलीगुदा, बन्दालोर, केड़ाचप्पी, रंगरूड़ी और हतनादिकिर में बनाए गए हैं। इस सामूहिक प्रयास में सेवा वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अजय शर्मा, मुखिया अमर मुंडू, ग्रामप्रधान अरविंद मुंडा, सामुएल पुर्ती और पूर्व माओवादी दुर्गन हस्सा सहित सभी टोलों के लोग शामिल हुए।
महिलाओं ने चार स्थानों पर सामूहिक भोजन का आयोजन किया और इसके बाद सभी ने एकसाथ भोज किया। चार नवंबर को सभी टोलों की एक संयुक्त बैठक हुई थी, जिसमें यह तय किया गया कि गांव का विकास ‘जल से, बल से और मिल-जुलकर’ होगा। इसके परिणामस्वरूप 12-13 नवंबर को गांव के सभी वर्गों ने श्रमदान किया।
मुखिया अमर मुंडू ने कहा, “हमने संकल्प किया है कि अब खेती ही हमारी ताकत बनेगी। अगर प्रशासन थोड़ा सहयोग करे तो हम गांव की तस्वीर बदल देंगे।”
ग्रामप्रधान सामुएल पुर्ती ने कहा, “अब हमारे पास सिंचाई के लिए पानी है। अगर सरकार सोलर वाटर पंप उपलब्ध कराए तो खेती और तेजी से होगी।”
पूर्व माओवादी दुर्गन हस्सा ने भी श्रमदान में भाग लिया और कहा, “अब मैं हिंसा नहीं, बल्कि हरियाली की राह पर चलना चाहता हूं। मेरा सपना है कि गांव को एक साथ मिलकर खुशहाल समाज बनाना है।”
अब इन गांवों के लिए ‘बोरीबांध’ केवल पानी रोकने का साधन नहीं, बल्कि उम्मीदों और बदलाव का प्रतीक बन गया है।