क्या झारखंड में कुड़मी जाति को आदिवासी दर्जा मिलेगा?

सारांश
Key Takeaways
- कुड़मी जाति को आदिवासी दर्जा देने की मांग पर सियासी हलचल तेज।
- कुड़मी संगठनों ने आंदोलन की योजना बनाई है।
- आदिवासी संगठनों ने कड़ा विरोध किया है।
- संविधान के तहत आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा जरूरी है।
- केंद्रीय सरना समिति ने धरने का ऐलान किया है।
रांची, 15 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड में कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) का दर्जा देने की मांग ने सियासी और सामाजिक सक्रियता को बढ़ा दिया है। कुड़मी समाज के संगठन इस मुद्दे पर झारखंड, ओडिशा और बंगाल में एकजुट होकर आंदोलन की योजना बना रहे हैं, जबकि आदिवासी संगठन इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं। ऐसे में स्थिति सामुदायिक टकराव की ओर अग्रसर होती नजर आ रही है。
कुड़मी संगठनों ने इस मांग के लिए एक ठोस रणनीति तैयार की है। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए बड़े धरने में ‘रेल रोको-रास्ता रोको’ (रेल टेका-डहर छेका) आंदोलन का निर्णय लिया गया है, जो अनिश्चितकाल तक जारी रहने की तैयारी है।
संगठनों का कहना है कि जब तक कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा नहीं दिया जाता, उनका संघर्ष जारी रहेगा। दूसरी ओर, आदिवासी संगठनों ने सोमवार को रांची में दो अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इस मांग का विरोध किया। पूर्व मंत्री देवकुमार धान, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव और अन्य आदिवासी नेताओं ने कुड़मी समाज के इस दावे को गलत बताया और इसे आदिवासी अधिकारों पर आक्रमण करार दिया।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि “कुड़मी समाज के नेताओं का मुख्य उद्देश्य केवल विधायक, सांसद और मंत्री बनना है, जिसके लिए वे आदिवासी समाज के संवैधानिक अधिकारों पर कब्जा करना चाहते हैं।” गीताश्री उरांव ने कहा कि पिछले वर्ष कुड़मी समाज ने पांच दिन तक रेल रोको आंदोलन चलाया था, लेकिन उस समय कोई भी मामला दर्ज नहीं हुआ था।
उन्होंने आगे कहा, “कुड़मी खुद को शिवाजी महाराज का वंशज और मराठा साम्राज्य से जुड़ा बताते हैं। ऐसे में उन्हें आदिवासी का दर्जा देना बिल्कुल भी संभव नहीं है।” उन्होंने चेतावनी दी कि संविधान द्वारा दिए गए अधिकारों की रक्षा के लिए आदिवासी समाज हर स्तर पर संघर्ष करेगा। इसी क्रम में केंद्रीय सरना समिति ने 20 सितंबर को राजभवन के समक्ष धरना और 17 अक्टूबर को सभी जिलों में उपायुक्त कार्यालय का घेराव करने का ऐलान किया है।
समिति की महिला इकाई की अध्यक्ष निशा भगत ने कहा कि आदिवासी भारत के पहले नागरिक हैं और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी कुर्बानियां दी हैं। उन्होंने कहा, “कुड़मी, कुरमी और महतो तीनों एक ही हैं और कभी आदिवासी नहीं रहे। यदि इन्हें आदिवासी का दर्जा दिया गया, तो पूरे देश में आदिवासी अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।” इस अवसर पर केंद्रीय सरना समिति के महासचिव संजय तिर्की, हर्षिता मुंडा, फूलचंद तिर्की, कुंदरसी मुंडा, निरंजना हेरेंज, डबलु मुंडा और लक्ष्मी नारायण मुंडा समेत कई आदिवासी नेता मौजूद रहे।